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________________ ४८ शंका-समाधान ************************************** इस तरह दूरदर्शी होकर यदि विचार किया जाय तो यही निश्चय होता है कि मुखवस्त्रिका को सदैव मुख पर बांधना ही उचित है। जो लोग मुँह पर मुखवस्त्रिका नहीं बांधते हैं वे न तो वायुकायादि जीवों की यत्ना ही कर सकते हैं और लिंग रहित होने से, न जैन साधु ही कहे जा सकते हैं। जो महाशय मुखवस्त्रिका को मुँह पर नहीं बांधते हैं वे पूर्वार्ध में बताए हुए प्रमाणों और उनके आचार्यों के उद्गारों को पढ़कर यदि शांत भाव से विचार करेंगे तो उन्हें अवश्य विश्वास होगा कि मुखवस्त्रिका मुँह पर सदैव बांधना उचित ही है। अगर वे मत-मोह से इतना नहीं कर सकें तो कम से कम अपने आचार्यों के निर्देश किये हुए प्रसंगों पर तो मुख पर मुँहपत्ति बांधकर धार्मिक क्रियाओं में होने वाली उतनी हिंसा से अवश्य बचेंगे, ऐसी आशा है। महानुभावो! यदि सदैव बांधने के कष्ट से डरकर हमेशा मुखवस्त्रिका नहीं बांध सको तो कम से कम उक्त प्रसंगों पर तो अवश्य बांधो और सदैव बांधने वालों की निन्दा तो मत करो। सदैव बांधने वालों को आदर की दृष्टि से देख कर उनका अनुमोदन करो और वैसी क्रिया करने की भावना रक्खो, जिससे मिथ्यात्व रूप पाप से तो बचे रहोगे। क्योंकि स्वयं सागरानन्द सूरि लिखते हैं कि - “निरवद्य भाषानी प्रतिज्ञा वाला छतां जो मुँहपत्ति ने न माने तो मिथ्यात्त्वी बने" अतएव मिथ्यात्त्व रूपी आस्रव से बचने का अवश्य प्रयत्न करिये। अन्यथा ध्यान रहे कि असत्य प्रचार में अपनी शक्ति का दुरुपयोग कहीं पर-भव पीडाकारी शूल न हो जाय। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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