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________________ हिन्दी संस्करण का आमुख "जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला', "साइंटिफिक फाउन्डेशन ऑफ जैनीज्म” के नाम से सर्वप्रथम अंग्रेजी में 1990 में प्रकाशित हुई थी। इसकी मांग तभी से निरंतर रही है। इसका द्वितीय संस्करण 1996 में प्रकाशित हुआ और अभी उसका पुनर्मुदण भी हुआ है। अंग्रेजी के प्रथम संस्करण का विमोचन गुरुदेव चित्रभानु जी द्वारा 'जैन समाज, यूरोप' के तत्त्वावधान में हुआ था और इसके द्वितीय संस्करण का विमोचन ब्रिटेन में भारत के तत्कालीन उच्च आयुक्त श्री एल. एम. सिंघवी ने "यार्कशायर जैन फाउंडेशन' लीड्स (यू.के.) के तत्त्वावधान में किया था। इस पुस्तक के विषय में उन्होंने निम्न व्याक्यावली लिखी है : । "प्रो. मरडिया ने हमें एक ऐसी पुस्तक दी है जिसमें भौतिकी और परा-भौतिकी को सह-सम्बन्धित किया गया है। इस पुस्तक में बुद्धिसंगत, वैज्ञानिक एवं अंतःप्रज्ञात्मक अवधारणायें दी गई हैं जो भारतीय परम्परा की अमूल्य निधि हैं। यह एक ऐसी पुस्तक है जो समग्र सत्य को प्रस्तुत करती है, स्थायी मूल्यों को प्रतिष्ठित करती है और आनेवाली सदी के लिए मार्गदर्शक है। मैं डा. मरडिया को उनके इस बहु-आयामी विद्वत्ता के प्रदर्शक अपूर्व योगदान के लिए बधाई देता हूं।" मेरे अनेक मित्रों ने मुझे सुझाव दिया है कि इस पुस्तक का हिन्दी प्रकाशन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि "जैन धर्म की वैज्ञानिक आधारशिला” पर हिन्दी में ऐसी पुस्तकें बहुत ही कम हैं। आधुनिक युग विज्ञान और सत्य की देहली पर चल रहा है, और 'जैनधर्म' न केवल विज्ञान-समन्वित धर्म ही है, अपितु उसकी गंभीर तार्किक आधारभूमि भी है जो वैज्ञानिक सत्य के परिज्ञान पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है। मुझे अत्यत प्रसन्नता है कि इस पुस्तक के हिन्दी अनुवाद का दुष्कर कार्य डा. एन.एल. जैन ने किया है। मैं इस कार्य हेतु उनके सिवा किसी अन्य विद्वान की बात सोच ही नहीं सकता था। जैन धर्म और विज्ञान पर उनकी गहन पकड़ है। यह अनुवाद उनकी इस प्रवृत्ति का स्पष्ट साक्ष्य है। हमने उनकी क्रियाशीलता तब देखी जब उन्होंने 1996 में लीड्स नगर के ‘यार्कशायर जैन फाउंडेशन' में भाषण दिया था। डा. जैन जैन दर्शन, भारतीय दर्शन एवं रसायन विज्ञान के परिज्ञाता होने के साथ हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेजी के भी ज्ञाता हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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