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________________ आमुख प्रथम अंग्रेजी संस्करण इधर कुछ समय से जैन धर्म को समझने और आधुनिक संदर्भ में उसकी उपयोगिता के मूल्यांकन के लिये जैन और जैनेतर जगत में पर्याप्त जागरूकता आई है। विदेशों के विविध - संस्कृतिवाले युवक गण आधुनिक परिवेश में इस धर्म की प्रासंगिकता को समझने का प्रयास कर रहे हैं। मेरा विचार है कि जैन धर्म की नींव वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है जो प्रत्येक व्यक्ति द्वारा मूल्यांकित की जा सकती है। उदाहणार्थ, मैंने चार स्वतः सिद्ध अवधारणायें (या सूत्र एक्सियम, आधारभूत मौलिक मान्यतायें) प्रकल्पित की हैं जिन पर मेरे विचार से, जैन धर्म की स्थापना हुई है । ये स्वतःसिद्ध अवधारणायें जैन धर्म के विवरण की तुलना में उसके सार पर अधिक केन्द्रित हैं । 1 इस पुस्तक के लेखन का प्रारम्भ 1975 में उस समय हुआ जब मैंने लीड्स विश्वविद्यालय, ब्रिटेन के सांख्यिकी के प्रोफेसर के रूप में उद्घाटन भाषण दिया था और जैन धर्म की सांख्यिकी विज्ञान के साथ प्रासंगिकता निदर्शित की थी । मैंने अपनी चार स्वतः सिद्ध अवधारणाओं को सर्वप्रथम लेस्टर की एक छोटी सभा में 1979 में प्रस्तुत किया था। इस बैठक में डा० नटूभाई शाह और प्रो. पॉल मारेट भी उपस्थित थे। सभी ने इन अवधारणाओं का प्रेरक स्वागत किया । इन्हीं दिनों बर्कले विश्वविद्यालय केलिफोर्निया, अमरीका के प्रोफेसर पी. एस. जैनी की "दी जैन पाथ आव प्योरीफिकेशन " ( अंतरंग शुद्धि का जैन मार्ग, 1979 ) प्रकाशित हुई। इसने मेरी रुचि को पुनर्दीप्त किया। मेरी यह पुस्तक प्रोफेसर जैनी के ग्रंथ की बहुत ऋणी है। इस पुस्तक के विवेचनों में जैन आगमों के जो स्रोत हैं, वे प्रायः सभी उनकी पुस्तक में पाये जाते हैं और इसीलिये उनकी यहां पुनरावृत्ति नहीं की गई है। जैन पारिभाषिक शब्दों की वर्तनी (स्पैलिंग) भी प्रायः जैनी जी की पुस्तक के अनुसार ही दी गई है। उनकी पुस्तक के अंत में जैन पारिभाषिक शब्दावली भी दी गई है जो यह पाठक को यह अनुभव करायगी कि जैन धर्म में 'कर्म' और 'योग' जैसे पारिभाषिक शब्दों के अर्थ हिन्दू धर्म में प्रचलित अर्थ से पूर्णतः भिन्न हैं । इसका अर्थ यह है कि इन शब्दों के लोकप्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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