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________________ शुद्धिकरण के उपाय 103 प्रभावना 8.8 पारिभाषिक शब्दावली 1. सम्यक्त्व के आठ अंग निःशंकित : शंका से मुक्ति निःकांक्षित : प्रत्याशाओं, इच्छाओं/ आकांक्षाओं से मुक्ति निर्विचिकित्सा : घृणा से मुक्ति अमूढदृष्टि मिथ्या धारणाओं या विश्वासों से मुक्ति उपगूहन सुरक्षा एवं संरक्षण स्थितिकरण स्थिरीकरण और संवर्धन उत्सवों/उपदेशों आदि के द्वारा धर्म का प्रभावी संप्रसारण वात्सल्य : निःस्वार्थ स्नेह/सेवा 2. जैन श्रावक के पांच प्राथमिक या स्थूल व्रत (अणुव्रत) अहिंसा : मन, वचन, काय से किसी को कष्ट न पहचाना, प्रेमभाव सत्य अप्रिय एवं कटु सत्य या झूठ न बोलना अस्तेय चोरी न करना, बिना दी हुई वस्तु न लेना, ईमानदारी ब्रह्मचर्य (अणु) : पत्नी के अतिरिक्त मैथुन से विरमण अपरिग्रह : आवश्यकता से अधिक संग्रहण न करना 3. प्रतिमा : त्याग के आदर्श चरण, त्याग के मानसिक संकल्प के चरण 4. कर्मबलों के प्रतिकारक बल गुप्ति : मन, वचन, काय की प्रवृत्तियों का नियमन/संरक्षण समिति : सावधानी दश धर्म : सम्यक कर्म/कर्तव्य : दस प्रकार के धर्म अनुप्रेक्षा : मानसिक चिंतनों की बारंबारता। ये बारह अनुप्रक्षायें हैं : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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