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________________ प्राक्कथन (अंग्रेजी का प्रथम संस्करण) यह अत्यंत संतोष की बात है कि प्रोफेसर मरडिया ने मुझसे अपनी "द साइंटिफिक फाउन्डेशन ऑफ जैनीज्म" नामक - अंग्रेजी पुस्तक का प्राक्कथन लिखने के लिये कहा। मुझे प्रसन्नता है कि उन्होंने मुझे यह अवसर दिया। मेरी प्रसन्नता के अनेक कारण हैं और हम दोनों के बीच जैन धर्म के सम्बन्ध में अनेक रोचक चर्चायें हुई हैं। वास्तव में, हमने उनसे इस विषय में भी जानकारी चाही कि वे आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से जैनधर्म और दर्शन की व्याख्या क्यों करना चाहते हैं ? मुझे प्रसन्नता है कि मैंने उनकी पुस्तक का प्रारूप देखा और संभवतः मैं उन कुछ व्यक्तियों में से हूं जिन्होंने इसका अंतिम प्रारूप देखा। मेरा विश्वास है कि उन्होंने जैन धर्म पर लिखित साहित्य के लिये, इस पुस्तक के द्वारा, महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। यहां मैं एक कारण और बताना चाहता हूं कि इस पुस्तक में प्रकाशित विचारों की प्रशंसा का श्रेय मुझे मिलेगा और विद्वान्, बुद्धिमान और अध्ययनशील प्रो. मरडिया की पुस्तक मेरे इस विनम्र प्राक्कथन के साथ प्रकाशित होगी। जैन धर्म एक अति प्राचीन धर्म है। जैन परम्परा लगभग सीमाविहीन (अनादि) काल से इसका उद्भव मानती है। तथापि, यह निश्चित है कि अत्यंत अविश्वासी या संशयी व्यक्ति भी इसके लगभग 3000 वर्ष के इतिहास को नकार नहीं सकता। तथ्य तो यह है कि उस समय भी यह निश्चेष्ट नहीं रहा। अनेक साधक आचार्यों और विद्वानों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उसके विकास में योगदान किया है, उसकी विवेचना और व्याख्या की है। यही कारण है कि जैनों का साहित्य इतना विशाल है। यही नहीं, यह प्रतिवर्ष विशालतर होता जा रहा है। जब से मैंने जैन धर्म का प्रारम्भिक अध्ययन चालू किया, तभी से मेरी यह धारणा रही है कि जैन सिद्धान्त आधुनिक विज्ञान से पर्याप्त मात्रा मे मेल खाते हैं। जैन विचार और जैन दर्शन अनादि है, अनंत है, लेकिन इसके प्राचीन ग्रंथ तत्कालीन भाषाओं में लिखे गये हैं और उनमें इसके विचारों को तत्कालीन वैज्ञानिक शब्दावली में व्यक्त किया गया है। वे ग्रंथ मूलतः प्राकृत और संस्कृत भाषाओं में लिखे गये हैं जो दुरूह और कठिन विचारों को सूक्ष्मता और स्पष्टता से व्यक्त करने में समर्थ हैं, परन्तु कभी-कभी भाषा की संक्षिप्तता या पुनरावृत्ति की सीमाओं के कारण उनका व्याख्यान कठिन प्रतीत हो सकता है, उनकी पारिभाषिक शब्दावली कठिन हो सकती है और जैन धर्म के किसी भी पक्ष पर लिखित आधुनिक पुस्तक में ऐसे पारिभाषिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003667
Book TitleJain Dharm ki Vaignanik Adharshila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanti V Maradia
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2002
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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