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________________ ऐ० नो० की ऐतिहासिकता २७४ की और धाम धूम से महोत्सव किया; तो कहना होगा कि लौकाशाह के दयाधर्म को उस समय लौकाशाह के अनुयायी भूल गए थे ? अथवा शाह ने केवल अपने मत की समृद्धि दिखाने को ही यह बेसिर पैर की अघटित घटना घसीट मारी है। यदि यह बात सच है तो फिर जैनियों में और लौकागच्छ में विशेष भेद नहीं था, यह सिद्ध होता है । आगे चल कर ऐ० नों० पृष्ट ९५ पर शाह फिर एक बिलकुल सफेद गप्प का प्रदर्शन कराते हैं । x x x "स्वामी शिवजी अहमदाबाद आए, उस समय अहमदाबाद में, एक नवलखा उपाश्रय था, जिसमें ७००० घरों वाले बैठते थे और इनके अलावा १९ उपाश्रय और भी थे। x x x ____स्वामी शिवजी का समय वि. सं. १६७० से १७२५ तक का है और तत्कालीन अहमदाबाद का इतिहास सर्वाङ्ग रूप से मिल सकता है । परन्तु शाह की लेखनी कच्ची और कमजोर थी, यदि शाह ७००० की जगह ९००००० घर ही लिख देता तो ठीक था, क्योंकि इससे उपाश्रय का नाम नवलखा सार्थक हो जाता ! क्योंकि शाह को कलम चलाने में न तो ७००० घरों के लेख के वास्ते प्रमाणों की जरूरत थी और न नवलाख के लिए ही रहती, फिर समझ में नहीं आता कि शाह ने यह संकोचवृत्ति नाहक क्यों की ? नीति में तो लिखा है कि:-"वचने किं दरिद्रता" अर्थात् जहाँ प्रत्यक्ष में लेने देने को कुछ नहीं चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003664
Book TitleShreeman Lonkashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherShri Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala Phalodhi
Publication Year1937
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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