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________________ मुनिराज के आसपास पहुँच गये थे और राजा भी वहाँ पहुँच गया था ! मुनिराज का ध्यान भंग हो गया था। राजा को शिकारी के रूप में देखा था। यह संजय राजा है, यह मुनि को मालुम भी हो गया था। क्योंकि राजा ने स्वयं अपना परिचय दिया था ! मुनिराज ने राजा को डाँटा नहीं, उपालंभ नहीं दिया, यह महत्त्वपूर्ण बात है ! उसका तिरस्कार नहीं किया, कटुवचन नहीं सुनाये – 'तूने मृगों को मार डाले, महापाप किया, तू मरकर नरक में जायेगा...' वगैरह कटु वचन नहीं सुनाये । राजा की ओर क्रुद्ध दृष्टि से देखा भी नहीं । अपराधी के साथ उन्होंने कैसा व्यवहार किया, यह बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है ! जिनवचन सुनाने हैं, धर्मोपदेश देना है, तो सर्वप्रथम श्रोता के मन को आश्वस्त करना होगा। उसके अपराध को माफ करना होगा । मुनिराज ने पहला ही वचन क्या बोला था ? 'अभओ पत्थिवा तुभं ! 'हे पार्थिव, हे राजन्, तुझे अभय है ! मेरी ओर से तू निर्भय है !' राजा निर्भय हुआ । मनुष्य को जहाँ भयंकर सजा मिलने की संभावना लगती हो, वहाँ यदि उसको माफी मिल जाती है, वह निर्दोष छूट जाता है, तब उसकी खशी की सीमा नहीं रहती है। राजा को अभय वचन सुनाने के बाद मुनिराज ने जिनवचन सुनाये हैं । उत्तराध्ययन सूत्र के अठारहवें अध्ययन में सात गाथाएँ कही गई हैं, जो मैंने आपको सुनाई हैं । उधर गर्दभाली मुनि ने शिकारी राजा को सात गाथा सुनायी थी, यहाँ मैंने आप जैसे धार्मिक लोगों को वे ही गाथाएँ सुनायी हैं । ये जिनवचन सुनकर शिकारी राजा साधु बन गया था, आप लोग क्या बनेंगे ? आप तो अच्छे लोग हैं न ? मांसाहार नहीं करते, शराब नहीं पीते, जुआ नहीं खेलते...वगैरह पाप नहीं करते हैं न ? __ सभा में से : हमारे चरित्र आप नहीं जानते...आप हमें अच्छे समझते हैं, परंतु हम लोग तो दुर्जनों के भी दुर्जन हैं...। महाराजश्री : दुर्जनता का पश्चात्ताप होता है ? यदि पश्चात्ताप होगा तो एक दिन दुर्जनता चली जायेगी और सज्जनता आ जायेगी । जिनवचनों के प्रभाव से ही दुर्जन सज्जन बन जाते हैं । भूतकाल में बने हैं, वर्तमान में बनते हैं और भविष्यकाल में बनेंगे । जिनवचनों का यही चमत्कार हैं ! अब मैं आपको मुनिवर गर्दभाली ने संजय राजा को सात गाथाओं में जो जिनवचन सुनाये हैं, उन वचनों को कुछ विशेषताएँ बताता हूँ । | संसार भावना २२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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