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________________ यदि मिथ्यात्व की वर्षा में जीव नहीं भीगता है, अविरति की वर्षा में कम भीगता है, तो उस पर प्रमाद - वर्षा के प्रभाव कम पड़ते हैं । सदैव याद रखना, यह भव - वन है । - सदैव याद रखना कि भव-वन में पाँच आश्रवों के बादल बरस रहे हैं, उस वर्षा में अनंत - अनंत जीव भीग रहे हैं । हम भी भीग रहे हैं - वैसी कल्पना करते रहना । भव-वन की भयानकता का ख्याल रहेगा तो संसार के प्रति राग नहीं रहेगा, विषयों में आसक्ति नहीं रहेगी । उपाध्यायजी ग्रंथ के प्रारंभ में ही, ज्ञानदृष्टि से संसार का स्वरूपदर्शन कराते हैं। स्वरूपदर्शन करवा कर, इस संसार में तीर्थंकर की वाणी ही जीवों का सहारा है, यह बात कहते हैं । भव-वन में सर्वत्र कर्मों की बेल : - वन में, जंगल में जमीन पर क्या होता है ? कंकर होते हैं, वृक्ष होते हैं, पौधे होते हैं... और बेलें होती हैं । भव-वन की जमीन पर सर्वत्र कर्मों की बेलें फैली हुई हैं। जमीन का एक टुकड़ा भी ऐसा नहीं है कि जहाँ कर्मों की बेल फैली हुई नहीं हो ! ऊर्ध्व लोक हो, मध्य लोक हो या अधो लोक हो । सभी जगह कर्मों की बेलें फैली हुई हैं। जीव जहाँ भी पैर रखता है, वहाँ कर्मों की बेल पैरों से लिपट जाती हैं । I हैं मुख्य रूप से कर्मों की बेल आठ प्रकार की होती हैं । अवांतर प्रकार १५८ होते हैं और अवांतर के भी अवांतर असंख्य प्रकार होते हैं। मुख्य आठ प्रकार ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अंतराय, नाम, गोत्र, वेदनीय और आयुष्य । अवांतर प्रकार हैं- ज्ञानावरण के पाँच, दर्शनावरण के नौ, मोहनीय के २८, अंतराय के ५, नाम के १०३, गोत्र के २, वेदनीय के २ और आयुष्य के ४ । इसके भी अवांतर प्रकार होते हैं । ये सभी बेल भव-वन की भूमि पर फैली हुई हैं । जहाँ-जहाँ जीव कदम रखता है, कर्मों की बेल उसके पैरों में लिपटती जाती हैं । — समझे न ? घर में हो या मंदिर में, दुकान में हो या धर्मस्थान में, हिलस्टेशन पर हो या तीर्थस्थान में... कर्मों का बंधन होता ही रहता है। एक आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सातों कर्म बंधते ही रहते हैं ! शुभ कर्म अथवा अशुभ कर्म... बंधते ही रहते हैं। संसार में एक भी ऐसी जगह नहीं है कि जहाँ कर्म बंध जीव नहीं करता हो ! Jain Education International For Private & Personal Use Only शान्त सुधारस : भाग १ www.jainelibrary.org
SR No.003661
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherVishvakalyan Prakashan Trust Mehsana
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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