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________________ प्रकाशककी ओरसे ०००... कविवर हस्तिमल्लके अञ्जमापवनंजय और सुभद्रा नाटकों के बाद माणिकचन्द्र ग्रन्थमालाका यह ४४ वाँ ग्रन्ध 'स्याद्वादसिद्धि' प्रकाशित होरहा है। इस अपूर्ण ग्रन्थकी केवल एक ही हस्तलिखित प्रति मूडबिद्रीके जैनमठसे प्राप्त हुई थी, और उसीके आधारसे न्यायाचार्य पंडित दरबारीलालजी कोठियाने इसका सम्पादन और संशोधन किया है । उन्होंने इसके लिए काफी परिश्रम किया है और ग्रन्थको परिचय तथा सारांश लिखकर उसे जिज्ञासुओंके लिए उपयोगी बना दिया है । इसके लिए वे धन्यवादफे पात्र हैं। 'ज्ञानोदय' सम्पादक पं. महेन्द्रकुमारजीने अन्धका प्राक्कथन लिखकर अन्धमाला को बहुत ही उपकृत किया है। ग्रन्थकर्ता और उसके समयके सम्बन्धमें सम्पादकने विस्तार से चर्चा की है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वादीभसिंह ईसाको पाठवीं-नवीं शताब्दिके विद्वान हैं परन्तु मेरी समझमें प्रादिपुराणोल्लिखित वादिसिंह और वादीभसिंह एक नहीं हैं और वादीभसिंह के गुरु पुष्पलेन और अकलंकदेवके सधर्मा पुष्पसेनकी एकता भी शंकास्पद है। यदि गद्य चिन्तामणि और क्षत्रचूडामणिके कर्ता ही स्याद्वादसिद्धिके रचयिता हैं तो वे उन पुष्पसेनके शिष्य थे जिनके संघका या जिनकी गुरुपरम्पराका कुछ पता नहीं है और जिनका पूर्व नाम श्रोडयदेव था। इस नामपरसे वे श्री बी० शेष गरि राव एम० ए० के अनुमानके अनुसार गंजाम (उड़ीसा) के आस-पासके मालूम होते हैं और उनका समय विक्रमको बारहवीं शताब्दिके लगभग होना चाहिए । मैं अपने 'महाकवि वादीभलिंह' शीर्षक लेखमें इन बातोंको विस्तार____जैन साहित्य और इतिहास पृ० ४७७-८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003653
Book TitleSyadvadasiddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Nyayatirth
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1950
Total Pages172
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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