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________________ जैन शास्त्रों की असंगत बातें ! और आश्चर्य उत्पन्न होता है । ग्रहणों के जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर- काल की कल्पना किस आधार पर की है, यह तो करने वाले ही जानें; परन्तु यह कल्पना सम्पूर्णतया निराधार और असत्य साबित हो रही है। सर्वज्ञों ने कहा है कि सूर्य ग्रहण के पश्चात् दूसरा सूर्य्य ग्रहण कम से कम ६ मास पहिले नहीं होता; मगर इस कथन के विरुद्ध दो वाकये तो मैं पेश करता हूं, जो इस प्रकार हैं । विक्रमाब्द १६५६ की कार्तिक वदी अमावश्या को पहिला सूर्य ग्रहण होकर पांच ही महीने बाद चैत बदी अमावश्या को फिर दूसरा सूर्य ग्रहण हुआ जिसको लोगों ने अच्छी तरह अवलोकन किया है। और इसवी सन १६३१ का नाविक पञ्चग भी The (Nautical Almanac ) जो London से प्रकाशित होता है मेरे पास पड़ा है । उसमें तीन सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण हुए हैं, जो इस प्रकार हैं पहिला सूर्य ग्रहण- तारीख १८ अप्रैल १६३१ दूसरा सूर्य ग्रहण - तारीख १२ सेप्टेम्बर १९३१ तीसरा सूर्य ग्रहण- तारीख ११ अक्टूबर १९३१ पहिला चन्द्र ग्रहण - तारीख २ अप्रैल १६३१ दूसरा चन्द्र ग्रहण - तारीख २६ सेप्टेम्बर १९३१ ४२ जैन शास्त्रों के ग्रहणों के कम से कम ६ मास अन्तर- काल बतलाने के खिलाफ बहुत ग्रहण हो चुके और होते रहेंगे। मैंने तो यहाँ केवल वही दिखाये हैं जिनका मेरे पास प्रमाण मौजूद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003650
Book TitleJain Shastro ki Asangat Bate
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaccharaj Singhi
PublisherBuddhivadi Prakashan
Publication Year1945
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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