SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य-वन्दन-स्तवनादि । ३४७ आठ पहोरनो पोसह करीये, ध्यान प्रभुनु धरीये । मन वच काया जो वश करीये, तो भव सायर तरीये। आ०।। इर्यासमिति भाषा न बोले, आडं अवलुं पेखे । पडिक्कमणासुं प्रेम न राखे, कहो केम लागेलेखे । आ०।७। कर ऊपर तो माला फिरती, जीव फिरे मन मांहीं ! चितई तो चिहुँ दिशि डोले, इण भजने सुख नाहीं। आ०il पोषधशाले भेगां थईने, चार कथा वली सांधे। काईक पाप मिटावण आवे, बार गणुं वली बांधे । आ०।९। एक ऊठती आलस मोड़े, वीजी ऊँचे बैठी। नदीयो मांथी कांइक निसरती, जई दरियामां पेठी। आ० ।१० आई बाई नणंद भोजाई, नानी मोटी वहुने । सासु ससरो मा ने मासी, शिखामण छे सहुने। आ०।११ 'उदयरत्न वाचक' उपदेशे, जे नर नारी रहेशे । पोसहमांहे प्रेम धरीने, अविचल लीला लेशे । आ० ।१२। [ आप स्वभाव की सज्झाय । ] . आप स्वभाव में रे, अबधु सदा मगन में रहना । जगत जीव है कर्माधिना, अचरज कछुअन लिना । आ ०।१। तुम नहीं केरा कोई नहीं तेरा, क्या करे मेरा मेरा । तेरा है सो तेरी पासे, अवर सभी अनेरा । आ० ।। वपु विनाशी तू अविनाशी, अब है इन का विलासी । वपु संग जब दूर निकासी, तर तुम शिव का वासी।आ०१३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy