SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चैत्य-वन्दन - स्तवनादि । ३३३ पारस नेमि जिन अंतर, श्रीरिषभ जिनंदा । गुर्वावली अरु बारां से, सामाचारी नंदा || उ० ॥ १०॥ सुनके वाचनी नव भावें, शिव लक्ष्मी वरंदा | निज आतमराम सरूपे, 'वल्लभ' हर्षदा ॥ उ० ॥ ११॥ [ दिवाली का स्तवन । ] जयो जगस्वामी वीर जिनंद ॥ टेर ॥ अपापा में प्रभु आये, नगर भवि जनको उपकार करंद ॥ ज० ॥ १ ॥ निज निरवान समयको जानी, सालां पर प्रभु धर्म कहंद ॥ ज० ॥ २ ॥ कार्तिक वदो पंदरसको राते, प्रातःकाल प्रभु मुक्ति लहंद ॥ ज० ॥ ३ ॥ परमातम पद छिनकेंमें लीनो, आठ करमको दूर हरंद ॥ ज० ॥ ४ ॥ कल्याणक निर्वाण महोच्छव, कारण मिल कर आये सुरींद ॥ ज० ॥ ५ ॥ पापा नगरी नाम कहायो, अस्त भयो जिहाँ ज्ञान दिनंद ॥ ज० ॥ ६ ॥ नव मल्ली नव लच्छी राजा, शांक अतिशय दिलम धरद । ज० ॥ ७ ॥ भाव उद्यांत गया अब जगसे, द्रव्य उद्योतको दीप करंद ॥ ज० ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy