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________________ २९८ प्रतिक्रमण सूत्र । ___ * संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं । सौंहींनमो सयो, सहिपत्ताणं च देइ सिरिं ॥३॥ अन्वयार्थ-ॐ संतिनमुक्कारो' श्रीशान्तिनाथ भगवान् को ओंकारपूर्वक किया हुआ नमस्कार 'खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं' श्लेष्मौषधि आदि लब्धि पाने वालों को 'च' और 'सौंहीनमो' ओं तथा ही-पूर्वक किया हुआ नमस्कार 'सव्वोसहिपत्ताणं' सर्वोषधि लब्धि पाने वालों को 'सिरिं' संपत्ति 'देई' देता है ॥३॥ भावार्थ-श्रीशान्तिनाथ प्रभु को ओंकारपूर्वक किया हुआ नमस्कार श्लेष्म-औषधि आदि लब्धियाँ पाये हुए मुनियों को शान्ति की संपत्ति देता है। इसी तरह ओं तथा ही-पूर्वक किया हुआ नमस्कार सर्व-औषधि लब्धि पाये हुए मुनियों को ज्ञानादि संपत्ति देता है ॥३॥ + वाणीतिहुअणसामिणि, सिरिदेवीजक्खरायगणिपिडगा । गहदिसिपालसुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४॥ अन्वयार्थ- 'वाणी' सरस्वती, 'तिहुअणसामिणि' त्रिभुवनस्वामिनी, 'सिरिदेवी' श्रीदेवी, 'जक्खरायगणिपिडगा' गणिपिटक का अधिष्ठाता यक्षराज, 'गह' ग्रह, 'दिसिपाल' दिक्पाल और ॐ शान्तिनमस्कारः श्लेष्मोषध्यादिलब्धिप्राप्तेभ्यः सौहीनमः सौंपधिप्राप्नेभ्यश्च ददाति श्रियम् ॥३॥ + वाणीत्रिभुवनस्वामिनीश्रीदेवीयक्षराजगणिपिटकाः । प्रहदिक्पालसुरेन्द्राः सदाऽपि रक्षन्तु जिनभक्कान् ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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