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________________ बृहत् शान्ति । २९१ करते समय तथा साधना की विधि में प्रवेश करते समय तथा उस में स्थिर होते समय साधक लोग. जिन के नाम को विधिपूर्वक पढ़ते हैं ; वे जिनेश्वर जयवान् रहें। ॐ रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृङ्खला वज्राङ्कुशी-अप्रतिचक्रापुरुषदत्ता-काली-महाकाली-गौरी-गान्धारी-सर्वास्त्री-महाज्वालामानवी-वैरोट्या-अच्छुप्ता-मानसी----महामानसीपोडशविद्यादेव्यःरक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा । ' अर्थ--ओं, रोहिणी, प्रजाति, वज्रशृङ्खला, वज्राङ्कुशी,. अप्रतिचक्रा, पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गान्धारी, सर्वास्त्रा महाज्वाला, मानवी, वैरोट्या, अच्छुप्ता, मानसी और महामानसी नामक, जो सोलह विद्याधिष्ठायिका देवियाँ हैं, वे तुम लोगों की नित्य रक्षा करें। ॐ आचार्योपाध्यायप्रभृतिचातुर्वर्ण्य (ण) स्य श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु, तुष्टिर्भवतु पुष्टिर्भवतु । अर्थ--ओं, आचार्य, उपाध्याय आदि जो चतुर्वर्ण साधुसंघ है, उसे शान्ति, तुष्टि और पुष्टि प्राप्त हो । १-विद्यादेवियों के जो नाम यहाँ है, वे ही नाम 'संतिकरं स्तोत्र' की पाँचवीं और छठी गाथा में है, पर उस में “सर्वास्त्रा" नाम नहीं है। दूसरे, मूल में 'षोडश' शब्द से सोलह देवियों का ही कथन करना इष्ट है और “सर्वास्त्रा” को अलग देवी गिनने से उन की संख्या सत्रह हो जाती है। इस से जान पड़ता है कि यह नाम यहाँ अधिक दाखिल हो गया है अथवा किसी देवी का यह दूसरा नाम या विशेषण होना चाहिये । उसः नाम की कोई अलग देवी न होनी चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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