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________________ अजित - शान्ति स्तवन । २७९ से 'सइसमाणणे' कर्ण को सुख देने वाला 'अ' और 'वलयमेहलाकलाव' कङ्कण तथा मेखला के समूह के और 'नेउर' झाँझर के 'अभिरामसद्द' मनोहर शब्दों से 'मीसए कए मिश्रित किया गया [ ऐसा संगीत प्रवृत्त किये जाने पर ]. 'सिंगण ' ऋषि- गण और 'देवगणेहिं' देव - गणों से 'थुअवंदिअस्सा' स्तवन किये गये तथा वन्दन किये गये, 'तो' इस के बाद देववहुहिं' देवाङ्गनाओं से 'पयओ' आदरपूर्वक 'पणमिअस्सा' प्रणाम किये गये [ और ] 'जस्स' मोक्ष के योग्य तथा 'जगुत्तमसासण अस्सा' लोक में उत्तम ऐसे शासन वाले 'जम्स' जिस भगवान् के 'सुविक्कमा ' सुन्दर गति वाले 'ते' प्रसिद्ध 'कमा ' चरणों को 'देवनट्टिआहिं' देव - नर्तकिओं ने ' हावभावविव्भमप्पगारएहिं' हाव, भाव और विभ्रम के प्रकार वाले 'अंगहारएहिं' अङ्ग विक्षेपों से 'नच्चिऊण' नाच करके 'वंदिआ' वन्दन किया 'तय' उस 'तिलोय सव्वसत्तसंतिकारयं तीन लोक के सब प्राणियों को शान्ति पहुँचाने वाले [ और ] 'पसंतसव्वपावदोसम्, सब पापदोषों को शान्त किये हुए [ ऐसे ] 'उत्तम' श्रेष्ठ 'संतिम् जिणं' शान्तिनाथ जिनवर को 'एसंह' यह मैं 'नमामि' नमन करता हूँ ॥ ३० ॥ ३१ ॥ भावार्थ - इन भासुरक और नाराचक नामक छन्दों में श्रीशान्तिनाथ की स्तुति है । इस में देवाङ्गनाएँ संगीत तथा नाचपूर्वक भगवान् का वन्दन करती हैं, इस बात का वर्णन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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