SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकलार्हत् स्तोत्र । २३७ भावार्थ-जो अपने केवलज्ञान से सारे जगत् को हाथ में रहे हुए आँवले की तरह स्पष्ट देखने वाला है और जो अचिन्तनीय प्रभाव का खजाना है. वह सुविधिनाथ भगवान् तुम्हें सम्यक्त्व पाने में सहायक हो ॥११॥ सवानां परमानन्द, कन्दो दनवाम्बुदः। स्याद्वादामृतनिस्यन्दी, शीतलः पातु वो जिनः॥१२॥ अन्वयार्थ-'सत्वानां प्राणियों के 'परमानन्द' परम सुखरूप 'कन्द' अङ्कुर को 'उद्भेद' प्रकट करने के लिये 'नवाम्बुदः'. नये मेघ के समान [और] 'स्याद्वादामृत' स्याद्वादरूप अमृत को 'निस्यन्दी' बरसाने वाला 'शीतलः जिनः' श्रीशीतलनाथ भगवान् 'वः' तुम्हारा 'पातु' रक्षण करे ॥१२॥ भावार्थ-जैसे नये मेघ के बरसने से अङ्कुर प्रकट होते हैं, वैसे ही जिस भगवान् के स्याद्वादमय उपदेश से भव्य प्राणियों को परमानन्द प्रकट होता है, वह शीतलनाथ प्रभु तुम्हारा रक्षण करे ॥ १२ ॥ भवरोगार्तजन्तूना, मगदङ्कारदर्शनः । निःश्रेयसश्रीरमणः, श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः ॥१३॥ अन्वयार्थ--'भवरोग' संसाररूप रोग से 'आतंजन्तूनाम्' पीडित प्राणियों को 'अगदङ्कारदर्शनः' जिस का दर्शन वैद्य के समान है [ और जो ] 'निःश्रेयसश्री' मोक्ष. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy