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________________ २२६ प्रतिक्रमण सूत्र । [श्रीसिद्धाचलजी का चैत्य-वन्दन । ] श्रीशत्रञ्जय सिद्धिक्षेत्र, दीठे दुर्गति बारे । भाव धरीने जे चढ़े, तेने भव पार उतारे ॥१॥ अनन्त सिद्धनो एह ठाम, सकल तीरथनो राय । पूर्व नवाणु रिखवदेव, ज्यां ठविआ प्रभु पाय ॥२॥ परजकुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम । नाभिराया 'कुलमंडणो', जिनवर करुं प्रणाम ॥३॥ (२) आदीश्वर जिनरायनो, गणधर गुणवंत । प्रगट नाम पुंडरिक जास, मही माहे महंत ॥१॥ पंच क्रोड साथे मुणींद, अणसण तिहां कीध । शुलध्यान ध्याता अमूल्य, केवल तिहाँ लधि ॥२॥ चैत्रीपुनमने दिने ए, पाम्या पद महानन्द । ते दिनथी पुंडरिक गिरि, नाम 'दान' सुखकन्द ॥३॥ [ श्रीसिद्धाचकजी का स्तवन ।] विमलाचल नितु वन्दीये, कीजे एहनी सेवा । मानु हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा ॥१॥ उज्ज्वल जिनगृह मंडली, तिहां दीपे उत्तंगा। मान रिमगिरि विनसे. आई अमार-मांगा ॥२॥ वि०॥. Jain Education International FOT Private P orta Almaanjalmmenhiraining
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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