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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । [ श्रीं सीमन्धरस्वामी का स्तवन । ] (१) पुक्खलवई विजये जयो रे, नयरी पुंडरीगिणी सार । श्रीसीमन्धर साहिबा रे राय श्रेयांस कुमार || जिनन्दराय, धरजो धरम सनेह ||१|| मोटा न्हाना अन्तरो रे, गिरुवा नवि दाखंत | शशि दरिसन सायर वधे रे, कैरव - वन विकसंत ॥२॥ जि० ॥ - ठाम कुठाम न लेखवे रे, जग वरसंत जलधार । कर दोय कुसुमें वासिये रे, छाया सवि आधार ॥ ३ ॥ जि० ॥ राय ने रंक सरिखा गणे रे, उद्योते शशि सूर / गंगाजल ते चिहुं तणारे, ताप करे सवि दूर ||४|| जि० ॥ सरिखा सहु ने तारवा रे, तिम तुमे छो महाराज । मुझसुं अन्तर किम करो रे, बांह ग्रह्या नी लाज || ५|| जि० ॥ मुख देखी टीलुं करे रे, ते नवि होय प्रमाण । मुजरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण ॥ ६ ॥ जि० ॥ वृषभ लंछन माता सत्यकी रे, नन्दन रुक्मिणी कंत । 'वाचक जश' एम विनवे रे, भय-भंजन भगवंत ||७|| जि० ॥ (2) सुणो चन्दाजी ! सीमन्धर परमातम पासे जाजो | मुज विनतडी, प्रेम धरीने एणिपरे तुमे संभलावजो ॥ जे त्रण भुवनना नायक छे, जस चोसठ इन्द्र पायक छे, नाण दरिसण जेहने खायक छे ||१|| सुणो० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only २२४ www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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