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________________ १८६ प्रतिक्रमण सूत्र । रोज के सूर्योदय तक पाँच आगार रख कर चारों आहारों का त्याग किया जाता है । रात के पच्चक्खाण । [ ( १ ) - पाणदार पञ्चकखाण' । ] पाणहार दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसा गारेणं, महत्तरागांरणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ । भावार्थ- -- यह पच्चक्खाण दिन के शेष भाग से ले कर संपूर्ण रात्रि - पर्यन्त पानी का त्याग करने के लिये है । [ (२) च विहाहार पखारे ] दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, चउव्विपि आहारं असणं पाणं, खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्त्रसमाहिवत्तियागारेणं बोसिरइ । "a भावार्थ -- इस पच्चक्खाण में दिन के शेष भाग से संपूर्ण 'रात्रि- पर्यन्त चारों आहारों का त्याग किया जाता है । .४ । ] [ (३) - तिविहाहार-पच्चकख दिवसचरिमं पच्चखाइ, तिनिहाप आहारं असणं, १ - यह पच्चक्खाण एकासण, वियासण, आयंबिल और तिविहाहार उपवास करने वाले को सायंकाल में लेने का है । २ - दिन में एगासण आदि पच्चक्खाण न करने वाले और रात्रि में चारों आहारों का त्याग करने वाले के लिये यह पच्चक्खाण है । ३ - अल्प आयु बाकी हो और चारों आहारों का त्याग करना हो तो 'दिवसचरिमं' की जगह 'भवचरिमं' पढ़ा जाता है | ४- - इस पच्चकखाण का अधिकारी वह है जिस ने एगासण, बियासण आदि व्रत नहीं किया हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003649
Book TitlePanch Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages526
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size17 MB
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