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________________ ११४ अज्ञान तिमिरजास्कर. ( यदा सर्वे ) जब इस मनुष्यका हृदय सब बुरे कामों से अलग होके शुद्ध हो जाता है तभी वह अमृत अर्थात् मोक्षकों प्राप्त होके आनंद युक्त होता है. प्रश्न- क्या वह मोक्षपद कहीं स्थानांतर वा पदार्थ विशेष है, क्या वह किसी एकही जगतमें है, वा सब जगतमें ? उत्तर- नही ब्रह्म जो सर्वत्र व्यापक हो रहा है वही मोक्षपद कहाता है और मुक्त पुरुष नसी मोक्षको प्राप्त होते है ॥ ३ ॥ तया ( यदा सर्वे ० ) जब जीवकी अविद्यादि बंधनकी सर्व गांठे विन्नभिन्न होके टूट जाती है तभी वह मुक्तिकों प्राप्त होता है ॥ ४ ॥ प्रश्न- जब मोक्षमें शरीर और इंडियां नहीं रहती तब वह जीवात्मा व्यवहारकों कैसे जानता और देख सक्ता है ? उत्तर - ( दैवेन ) वह जीव शुद्ध इंडिय और शुद्ध मनसें इन श्रानन्दरूप कामाकों देखता और जोक्ता नया उसमें सदा रमण करता है क्योंकि उसका मन और इड़ियां प्रकाश स्वरूप हो जा - ती है ॥ ५ ॥ प्रश्न- वह मुक्त जीव सब सृष्टिमें घुमता है अथवा कहीं एकदी काने बेठा रहता है ? उत्तर - ( य एते ब्रह्मलोके० ) जो मुक्त पुरुष होते है वे ब्रह्मलोक अर्थात् परमे व कों प्राप्त होके और सबके आत्मा परमेश्वरकी उपासना करते हुए उसीके आश्रयसें रहते है. इसी कारण से ननका जाना माना सब लोक लोकांतरों में होता है. उनके लियां कहीं रुकावट नही रहती और उनके सब काम पूर्ण हो जाते है, कोई काम पूर्ण नही रहता इस लिये मनुष्य पूर्वोक्त रीतीसें परमेश्वरकों सबका आत्मा जानके उसकी उपासना करता है वह अपनी संपूर्ण कामनाओंकों प्राप्त होता है यह वात प्रजापति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003648
Book TitleAgnantimirbhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1906
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Vaad, & Philosophy
File Size22 MB
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