SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ प्रकाश. You सात हाथनी अवगाहनानुं मध्यम मान सामान्य सिवनी अपेक्षाए चितवनुं, जेथी कोइ जानो दोष वशे नहीं. जघन्य अवगाहनानुं स्वरूप. गाय होइ रयणी, अठेवय अंगुलाई सादिया । एसा खनु सिद्धाणं, जहन्नयोगादणा नणिया " ॥ १ ॥ आगळ उपर एटले १३ हाथनी अवगाहना 46 एक हाथ ने tarai सामान्य केवलीनी जाणवी. " १ (6 आ अवगाहना वे हाथ प्रमाणवाळा कुर्मापुत्र वगेरेनी जाणवी; अथवा सात हाथ उंचा शरीरवाळा अने यंत्रपीक्षणने लइने संकुचित शरीरवालानी पण ते जघन्य अवगाहना जागवी. ते उपर जाष्यकार श्री जिननझगणी क्षमाश्रमण भगवान् या प्रमाणे कहे बे " जेठान पंचधणुसय, तणुस्स मज्जायस तथ्यस्स । देह तागढ़ीणा, जहन्निया जावदथ्थस्स " ॥१॥ पांचसो धनुष्यवाळानी उत्कृष्ट ने सात हाथवाळानी मध्यम अवगा हना अहिं शरीरने त्रीजे जागे न्यून समजवी ने एक हाथ अने एक हाथनो त्री जो भाग उपर ए जघन्य अवगाहना समजवी. – एटले उत्कृष्ट ३३३ अने जघन्य १ ए रीते अवगाहना समजवी. ते विषे या प्रमाणे मध्यम लखे बे “ सतसिएस सिद्धि, जहन्न कहमिदं विदत्थेसु । सा किरतिथ्यरेसु, सेसाणं सिज्माणां ॥ १ ॥ तेपु होज विदुत्था, कुम्मापुचादयो जहन्नेां । संवयस्स - हथ्थ सिद्धस्स दीचि " ॥२॥ सिद्धोना संस्थाननुं लक्षण. योगादणाए सिद्धा, नवविभागेण होइ परिहीणा । संगण से छं, जरामरणविषयमुक्काणं " ॥ १ ॥ પર Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy