SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 448
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०१ श्री प्रात्ममबोध. ष्य झोकमा शरीरनो त्याग करी त्यां लोकाग्रने विषे समयांतर अने प्रदेशांतरने अणफरसी गतिवझे जश्ने सिध जीवो रहे ने अने त्यां निष्ठितार्थ (सर्व अर्थथी परिपूर्ण ) थाय . अहिं शंका करे ने के, सिफ जीवोने कर्म रहितपणुं होवाथी तेमने गति थवी केम संभवे ? तेना उत्तरमा कहेवातुं के, एवी शंका करवी नहीं कारण के, पूर्व प्रयोग अने गति परिणामथी तेमने गति थवानो संलव . तेने माटे जगवती अंगमा श्रा प्रमाणे कहेलु ठे __“ कहणं नंते अकम्मस्स गइपमायमिति मोयमा निस्संगताए निरंगणताए गतिपरिणामेणं बंधणछ्यणताए निरि धणताए पुव्वपयोगेणं अकम्मगइं पं०" ॥ श्री गौतम स्वामी श्री वीरमजुने पुढे छ के, " हे जगवन्, अकर्मने गति केवे प्रकारे थाय ? जगवन् कहे छे-निःसंगपणे एटने कर्मरुपी मलनो नाश होवाथी, नीरोगीपणे एटले मोहनो विनाश होवाथी, गति परिणामे एटले तुंबकीना फळनी जेम गतिना खजाववमे, कर्मना बंधने जेदवावमे एटले एरंगीना फलनी जेम, निरिंधनपणे एटने कर्म रुषीइंधणाथी धूमामानी जेम मुकाववावके, पूर्वना प्रयोगे करीने एटले सकर्मताने विषे गति परिणामवाला बाणनी जेम अकर्मवंताने पण गति जणाय छे. एप्रकारे विशेषपणे तुंबी फलना दृष्टांतोनी योजना सूत्रथी जाणी लेवी. ते स्थने नयेला सिक जगवानोने जे संस्थान, प्रमाण छे ते बतावे छे" दोहं वा हस्सं वा जं चरिमं जवेज संगणं । तत्तोऽतिनागहीणा सिंघाणोगाहणा भणिया " ॥१॥ ... "पांचसो धनुष्य प्रमाण दीर्ध बे हाथ ममाण ह्रस्व, वा शब्दथी मध्यम अथवा विचित्र मकानुं जे ब्रह्मा नवमां शरीरनुं संस्थान होय ते संस्थानथी त्रीजे जागेहीन एटले मुख उदर आदि-छिनो पूरातां त्रीजे नागे न्यून एवी सिफना जीवोनी अवमाहना श्री तीर्थकर लगवाने कहेल . " १ .. अहि संस्थान प्रमाणनी अपेक्षाए बिनाग हीन एवं ते संस्थान जाणवू. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy