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________________ तृतीय प्रकाश. जन्म्या तेमने अवश्य मरवू ले ते हुं जाणुं बु. परंतु तेमने कयारे कयां, केवी रीते अने केटोक काले मरवू छे ? ते ९ जाणतो नथी. तेमज केवा कर्मे करीने जीवो नरकमां उपजे जे ? ते मारा जाणवामां नथी पण तेत्रो पोताना करेला नगरा कर्मोथी नरकमां पमे , एम हुं जाणुं बुं." - अतिमुक्त कुमारना आ वचनो सांजली तेना माता पिता हृदयमां खुशी या गया. "श्रा पुत्र चारित्रमा स्थिर चित्तवालो ." एवी खात्री यतां तेमणे दीदा बेवानी आझा आपी. अने मोटा आवरथी तेनो दीक्षा महोत्सव कर्यो. राजकुमार अतिमुक्त स्नान, विलेपन तथा वस्त्रानूषणथी विजूपित था मातापितादि परिवारथी परितृत बनी सुंदर शिविकामां बेशी विविध वाजित्रोना ध्वनि साथे नगरमा फरवा निकटयो. ते समये अन्यना दाननी हा राखनारा चारण नाट वगेरे याचको आ प्रमाणे आशिष आपवा लाग्या-"राजकुमार, तमे धर्म अने तपथी कम रुपी शत्रुओनो जय करो. हे जगतने आनंद करनारा ! तमाएं सदा कट्याण थाो. उत्तम ज्ञान, दर्शन तथा चारित्रवमे, न जीती शकाय तेवी इंडियोने जीतो, साधु धर्मनुं सम्यक प्रकारे पालन करो. अने निर्विघ्ने सिछिपदने प्राप्त करो." ___ आ प्रमाणे याचकोथी स्तवातो नगरना स्त्री पुरुषोथी आदरपूर्वक जोवातो अने अर्थी लोकोने ज्यादान आपतो ते अतिमुक्त कुमार नगरनी वाहेर नीकली ज्यां श्री वीरपत्नुनुं समवसरण हतुं, त्यां आव्यो. दूरथी शिविकामांथी जतरी गयो. पनी माता पिता तेने आगन्न करी श्री वीरप्रनुनी पासे आव्या अने वंदना करी आ प्रमाणे बोव्या-" जगवन , आ अतिमुक्त कुमार अमारो स्ट, मनोज्ञ अने एकनोएक पुत्र जे. जेम कमन कादवमाथी उत्पन्न थाय ने अने जो करी वधे ने पण ते कादव तथा जलनी साथे लिप्त यतुं नथी, तेम आ कुमार शब्द, रूप, लक्षणोए करी काममांयी नत्पन्न यत्रो डे, गंध, स्पर्श लक्षणवाला नोगमा वृधि पाम्यो छे, पण कामनोगमां के सगा स्नेहीअोमां सेपायो नथी. वली आ कुमार आ संसारना जयथी नग्नि थइ तमारी पासे दीक्षा सेवा श्छे जे, माटे अमो आपने आ शिष्यरुपी निक्षा आपीए जीए ते आप कृपा करी अंगीकार करो." Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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