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________________ द्वितीय प्रकाश चोयुं स्थूख मैथुन विरमण व्रत. हवे चोथु स्थूल मैथुन विरमण व्रत कहे जे. स्थूल एवं मैथुन एटले स्थूलपणे कामसेवन, तेनाथी विराम पामवं, ते चोयुं स्थूल मैथुन विरमण व्रत कहेवाय जे. अर्थात् परस्त्री वगेरेनो त्याग करवा रुप ते व्रत ने. ते आ प्रमाणे“ ओरालिय वेनविय, परदारासेवणं पमुत्तणं । गेहिवए चनत्थे, सदारतुदि पवजिजा" ॥ १॥ ___" औदारिक अने वैक्रिय परस्त्रीनुं सेवन मुकीने गृहस्थ चोथा व्रतने विषे स्वदार संतोषना व्रतने ग्रहण करे ." ? ___ अहिं औदारिक अने वैक्रिय एवी परनी-पोतानाथी जुदानी अर्थात् मनुष्य, तिर्यंच अने देवतानी-मनुष्यनी परणेली, अथवा ग्रहण करेली-राखेली वगरे स्त्रीओ तथा तिर्यचणी अने देवीओ, तेमनुं सेवन, तेनो त्याग करी गृहस्थ चोथा व्रतने विष स्वदार संतोष अंगीकार करे एटले परस्त्री तथा वेश्याने वर्जी पोतानी स्त्रीमां संतुष्ट था रहे. अहिं प्रश्न करे ने के, श्रावकोने वैरादि दोषने उत्पन्न थवाने सीधे परदारानो संसर्ग करवो युक्त नयी; ए तो ठीक, पण जे वीजी स्त्रीओ नदीना जलनी पेठे सर्वने साधारण होय डे, तेमनो उपनोग करवामां शो दोष ?" तेना उत्तरमां गुरु कहे जे--" एम न कहो. कारण के, तेवी स्त्रीनो उपजोग पण सर्व पुराचारोनी शिवानुं मून्न होवाथी आलोक तथा परलोकमां महा मु:खनो हेतु डे, तेयी तेनो सर्वथा त्याग करवो युक्त छे. कडं डे के," जंपति महुर वयणं, वयणं दंसंति चंदमिव सोमं ।। तहवि न विससियव्वं, नेह विमुक्काणवेसाणं " ॥१॥ " वेश्या स्त्री सुलक्षणा स्त्रीनां जेवां साकर साथे मळेला दूधनी समान मधुर वचन बोले . चंमा जे सौम्य वदन देखामे छे, तोपण ए स्नेहहीन वेश्याओनो विश्वास करवो नहीं." ? " मा जाणह जह मन, वेसाहिश्र सममणुहावं । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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