SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री आत्मप्रबोध. तेवा देवाने नमस्करण एटले मस्तक व पंचांग वंदन न करवुं, ते बीजी यतना कहवाय बे. सम्यक्त्व वंत पुरुषोए या बनेनो त्याग करवो. तेनो त्याग न करवायी जो तेवा देवाने वंदन - स्तवन वगेरे करवामां आवे तो तेना नक्त लोको मिथ्यात्व वगेरेमां स्थिर थाय बे, १३८ प्रवचन सारोवार नामना ग्रंथमां लखेलुं डे के, मस्तके करी जे करवामां वे ते वंदन कवाय अने प्रणाम पूर्वक श्रेष्ठ ध्वनि बजे गुणोनुं कीर्त्तन करं, ते नमस्करण कहेवाय बे. तेने माटे बीजे स्थळे पण या प्रमाणे लखेलुं बे. वंदण यं करजोमण, शिरसा नमण पुयणं च इहनेय । वायाई नमुक्कारो, नसणं मण प्पसाओत्ति" ॥ १ ॥ " 46 कर जोवा ते वंदन, मस्तक नमाव ते नमन, वचने करी नमवं, ते नमस्करण ने मननो प्रसाद - प्रसन्नता नमसन समजवं. " १ परतीर्थ प्रथम नहीं बोलाव्या बतां, रोमनी साथे आलाप न करवो त्रीजी यतना कदेवाय ले सम्यकदृष्टि पुरुषो तेवी आलापनो सर्वथा त्याग करो जोइए. परतीर्थनी साथै संझपन कर, एटने वारंवार न बोलवं, ए चोथी यतना कहेवाय छे, सम्यग् दृष्टियोए संलपन न कर जोइए, परती थींनी साथे विशेष भाषण करवाथी अति परिचय थाय बे ने तेने लड़ने आचार भ्रष्ट थवाय बे. तेमज मिध्यात्वनो उदय थ आवे छे. कदि परतीर्थिओ प्रथम बोलावे तो संग्रम रहित थ लोकापवादना जयर्थी तेनी साथ थोकुं बोलकं. ते परतीर्थिओने अशन, पान, खादिम ने स्वादिम तथा नख पात्र अनुकंपादान सिवाय बीजी रोत न आए पांचवी यतना कहेवाय बे. बी पाथी जो ते वीजा लोकोना जोवामां आवे तो तेमनुं बहुमान थाय मिथ्यात्वनी प्राप्ति थाय बे. मात्र परतीर्थित्र्यांने अनुकंपादान करवानीज आज्ञा छे. अनुकंपा शिवाय धर्म बुद्धिथ । तेमने कांइ पण आप शकातुं नथी. अनुकंपादान देवामां कांइ पल दोष नथी. तन माटे कछु छ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy