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________________ १३४ श्री आत्मप्रबोध. थानो नावार्थ आवी जाय . __ पद्मशेखरनी कथा. अबूधीपमा जरतक्षेत्रनी अंदर पृथ्वीपुर नामे नगर ने. ते नगरने विषे पद्मशेखर नामे राजा राज्य करे . एक दिवसे ते नगरनी पासे आवेना वनमां घणा मुनिग्रोथी परिवृत्त थयेला श्री विनयंधर नामे आचार्य समोसा. तेमना आगमननी वाती सांनळी राजा प्रमुख घणा लोको तेमने वंदना करवाने आव्या. गुरुवर्ये सर्व नव्य जीवोना उपकारने माटे धर्मदेशना आपी. ते वखते राजा पद्मशेखरे गुरु पासयी जीवाजीवादि नव तत्वोनो परमार्थ जाणी तेने वज्रलेपनी पेठे पोताना ह्रदममा धारण को हतो. बोजा पण घणा जव्य जीवोए ते समये गुरु पासेयो सम्यक्त्त्व रत्नने प्राप्त कर्यु हतुं. ते पती राजा प्रमुख सर्व लोको विनययो गुरु महाराजने नमन करी पोतपोताने स्याने चाख्या गया. पर। गुरु महाराज त्यांथ विहार करी बीजे स्थले चाट्या गया हता. त्यारथी राजा पद्मशेखर श्री जिनोक्त तत्त्वोने विषे आस्तिकताने धारण करी सुखे कान निर्गमन करतो हतो. कदि कोइ पुरुष जिनोक्त नव तत्वोनी नपर श्रघा न राखे अने पोतान) मंद बुधिने बस्ने ते तरफ अनाव दर्शावे तो राजा पद्मशेखर जेम सारथि वृषनने वश करे तेम तेने वादयी जोतो वश करी आहेत धर्मनुं ययार्थ स्वरूप समजावतो हतो. वळी ते राजा को वार घणा सोकोनी सना वच्चे गुरु तत्त्वनी या प्रमाणे प्रशंसा करतो हतो-" हे जव्य लोको, आ संसारमा गुरु सर्वोत्तम जे. जे सदा आ लोकनी ममतायो रहित, जीवदयाना प्ररूपक, उष्ट वादिगणने जितनार, कषाय रहित, नपमा रहित, उपशम रसना समूहयो परिपूर्ण हृदयवाना, रागषयो वर्जित, संसारय। विरक्त, काम विकारने नाश करनार, सिफि रूपी स्त्री उपर परिचार करनार, सर्व प्रव्यनो परिहार करनार, चारित्र रुप महारत्नने ग्रहण करनार, सर्व जीवो नपर करुणा रसने वर्षावनार, अने पुर्धर प्रमाद रुप गजघटानो नाश करवामां सिंह समान , ते शुध गुरु कहेवाय उ. जे प्राणीओ मनुष्यत्व विगेरे सर्व धर्मनी सामग्री प्राप्त कर एवा मुणवाला गुरुने सेवे , तेवाओने धन्य छे. अने जेओ तेमना उपदेश वचन रूप Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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