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________________ श्री आत्मप्रबोध. सुधर्म राजानी कथा. पंचान्न देशमा वरशक्ति नामे एक नगर हां. तेमां दयायो जेनु आई हृदय , अने जे जैन धर्ममा पूर्ण रागी जे,एवो सुधर्मा नामे राजा राज्य करतो हतो. तेने जयदेव नामे एक नास्तिक मंत्री हतो. एक वरखते परदेशमायो आवेन्ना कोश्चर पुरुषे सना मंझपमां बेठेला राजानी आगळ विनंतो कर। के, “ स्वामी महावन नामनो एक सीमामानो राजा घणो जन्मत्त थइ गयो जे. ते अनेक गामोनो नाश करे ने अने सार्थपतिओने बुंटे . ते पुष्ट राजा तमारा शिवाय कोश्थी वश था शके तेम नथी." ते चरना आवा वचन सांजळी राजाए पोताना मंत्रीनी सामे जोयु, एटने मंत्री विनययी बोध्यो, " महाराजा, ए बोचारो रंक राजा आपनी आगळ कोण मात्र ने ? ज्यांसुधी आप महाराजाए तेनुं आक्रमण कर्यु नथी, त्यांसुधी ए गर्जना करे ले. तेने माटे कयु छ के, " तावद्गर्जति मातंगा, वने मदनरालसाः । शिरोऽवनग्नतांगूनो यावन्नायाति केशरी" ॥१॥ " ज्यांसुधी मस्तक पर पुनमी चमावी केशरीसिंह अान्यो नयी, त्या सुधी मदना जारथी जरपूर एवा गजेंघो वनमां गर्जना करे ." ? मंत्रीनां आवां वचनो सांनळी राजाए चिंतव्युं के, जे ताबानो राजा पोताना देश के मंझळनो नाश करनार थाय, तेने अवश्य वश करवो जोइए. नहीं तो तेने नोतिना नंगनो प्रसंग प्राप्त थाय . नीति शास्त्रमा लखेने के, " पुष्टस्य दंमः स्वजनस्य पूजा" एटले जे पुष्ट होय तेने दंम आपको अने जे स्वजन होय तेनी पूजा करवी; माटे आ कार्यमां जरा पण विलंब न करवो." आई चिंतव। राजाए आझा करी पोताना सैन्यने एकवू कर्यु अने पोते सज्ज थइ ते महाबन्न शत्रु नपर चमाइ करवा चाव्यो. अनुक्रमे तेना देशमां आव्यो, अने मोटी समाइ करी ते राजाने कणवारमा हरावो दोधो. ते राजानुं सर्वस्व हरी लइ राजा सुधर्म पागे फरी पोतानी राजधानी पासे आव्यो. नगरना महाजन मंगळे मोटा आमं. बरयो सामैयुं कर्यु अने राजानो प्रवेशोत्सव कर्यो. मोटा सैन्ययी परिवृत थयेस्रो राजा जेवामां नगरना मुख्य दरवाजा पासे आव्यो, तेवामां ते दरवाजो अकस्मात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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