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________________ (६) तेना मुखमाथी 'सोऽहं' रुप महानाद थया करे , जे महानादनो प्रतिध्वनि गगनने जेदी स्रोकाकाशना सर्व प्रदेशमा व्यापी जाय ." । आ ग्रंयना चोथा प्रकाशनुं नाम परमात्मस्वरूप . परमात्मा कोण ? परमात्मापा' के होय ? अने तेनी प्राप्ति शी रीते थाय ? ए विषयो ग्रंथकारे सुबोधक वाणीथी वणवेला जे. जवस्थ केवळीनुं स्वरूप आपी जिननिक्षेपार्नु यथार्थ रहस्य दशावेलु उ. ते पछी सिफ स्वरूप, सिधोनी अवगाहना अने समस्त वस्तु विषयिक केवळझान अने केवळदर्शन संक्षिप्तमां एवी स्पष्टताथी निरूपित करेला डे के, जे उपरथी ग्रंथकारनी दिव्य प्रतिनावाळी महाशक्ति जणाइ आवे . श्री अर्हत् जाषित जैनागममा जेने अनिर्वाच्य कहे , तेवा सिक सुखनु दृष्टांत सहित वर्णन करतां ग्रंथकार विघान् वाचकोना हृदयने आकर्षी ले ले. ते पनी सिद्धनगवानना अलौकिक गुणोनुं वर्णन करी अने आत्मबोधनी पुर्वनता दर्शावी श्री विकच्छिरोमणि ग्रंयकार आ आत्मिकझानना महोदधिरुप ग्रंयना सामा तट नपर आवी पोहोचे जे--ग्रंथ समाप्त थायजे. आ बेम्बा गहन विषय उपर ग्रंथकारनो जे महान् उद्देश बे, तेने जो पबवित करवा धारीए तो आ प्रस्तावना पण एक ग्रंथरुप था पसे. तेथी संक्षेपमा एटर्बुज कहेवातुं के, परमात्मभाव ए लोकोत्तर दिव्यत्नाव जे. ते नावनी साथे सिधावस्थानो उत्कृष्ट संबंध जे. सिधावस्थानो आनंद अवर्णनीय छेअवाच्य जे. ते आनंदना अनुलवीओज तेने जाणे . आपणे तो तेनी नावनाज जाववानी . ए जावना जावतांज विचार, वाणी अने कृति आनंदमय बनी जाय . ते विषे एटर्बुज कहेवू वश बे. आ प्रमाणे धर्म, अर्थ, काम अने मोद ए चार पुरुषार्थनी संख्याने जाणे सूचवता होय, तेवा चार प्रकाशथी आ आत्मप्रबोध ग्रंथने तेना विद्वान् कर्ताए प्रकाशित करेलो छ. उदयमान जैनसमुदायने धर्म अने तत्त्वोनी श्रेष्ट शिक्षण पचतिने जैनागम प्रमाणे उत्तेजी तेने स्वाश्रयनिष्ट तया कर्तव्यनिष्ट करवा आ ग्रंथ उद्देशे छे, एटलुज नहीं पण तेना मनन पूर्वक अध्यासीने आत्मिक उन्नत्तिना आनंदमय द्वारसुधी उत्तम सुबोधना शब्दोथो ते दोरी जाय छे ए निःसंदेह . ___ आ ग्रंथना कर्ता श्री जिनमानसूरि खरतरगच्छना एक प्रख्यात आचार्य हता. विक्रमसंवत् १७८४ ना वर्षमा तेमनो जन्म विकानेरमां थयो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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