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________________ प्रथम प्रकाश. ध्यानमां लगान्युं तवामां शासन देवी प्रत्यक्ष प्रगट थइ नीचे प्रमाणे बोली" वर सिजिव सुप इसमयल इवानयनत्रमामागऽविनिययमणे कुसु का मिणं " ॥ १ ॥ ६७ " प्रधान ने मोटाम मोटा धर्मने तथा आगमने तुं वे तारो जय नष्ट थयेलो समजजे. तेथी मनमां जरा पण मनने निश्चित राखवं. " १ " जं चिश्वंदणमज्जगादं नर्जितसेलइच्चाई पखिविय निवसहाए जयं धुवं तुज्झ दादामि" ॥ २ ॥ “ जे चैत्यवंदनना मध्यमां “ उर्जित सेन सिहरे " ए गाया डे, ते मदिप्त गाया बे; एम तेना कहेवाय । तने राजा विक्रमनी सजाम अवश्य जयनक्ष्मी अपावीश. " २ Jain Education International या वात सांजळी धन शेव हर्षित थइ गयो. पछी तेणे रात्रिने सुखेथी निर्गमन करी. मनात थतां राजा विक्रमे ते बने संघपतित्रोने पोतानी सनामां परिवार सहित बोलाव्या. तेस्रो राज सनामां आव्या अने राजानी आज्ञाथी ते बने पक्षकारोए पोत पोतानो वृत्तांत जगाव्यो. ते सांजळी राजा विक्रम बोल्यो पति, तमो ने जैन आगमना ज्ञाता बो; जैन धर्मना श्रद्धालु बो जिनशासनना प्रजावक करवाने विषे प्रवीण देखाओ बो, ते बतां तमोए 66 घटित कार्य के आरंज्यं बे ? प्रथम धन शेठे नम्रताथी कहुं, " राजेंद्र, मोमाराम वस्त्र आभूषणोए करे जिनपूजा करीए बीए, तेनो आ पुष्ट बुद्धिवाळो शेठ शामाटे विनाश करे बे ? त्यारे वरुण शेठे जणान्युं, “स्वामी, मोमारा तीर्थने विषे कोइने प्रविधि - आशातना नहीं करवा दशए. या प्रमाणे बनेना वचन सांगळी राजाए संशय लावीने कां, “ या तमारा नेम कोनुं तीर्थ हो, ए शी रीते जाणवामां आवे ?" धनशेठे कां, “स्वामी, तीर्थमाज बेकारणके, अमारा चैत्यवंदननी अंदर नज्जित सेल सि हरे ' इत्यादि गाया लांबा वखतथी चाली आवे छे. जो आपने तेमां शंका रहे 66 6 For Private & Personal Use Only पाम्यो बे, एटले दुःख धं नहीं. www.jainelibrary.org
SR No.003647
Book TitleAtmprabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinlabhsuri, Zaverchand Bhaichand Shah
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1912
Total Pages464
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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