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________________ हस्तिनापुर देश की प्राचीनतम राजधानी मानी जाती है महाभारत सम्बन्धी सारी राजनीति का मंच यह नगर ही रहा है। हस्तिनापुर में कौरव और पांडव, धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य के संग्राम लड़े गये । हस्तिनापुर नगर की माटी ने भीष्म पितामह जैसे महापुरुष को जन्म दिया, जिन्होंने राजनीति और धर्मनीति के युग-युगीन संदेश दिये। विदुर नीतियों का निर्माण भी हस्तिनापुर की ही धरती पर हुआ। सचमुच हस्तिनापुर भारत के इतिहास का वह संविभाग रहा है जिसके धरातल पर कालचक्र ने आत्म-तटस्थता से कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। हस्तिनापुर का इतिहास उक्त संदर्भ-समय से भी प्राचीन रहा है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से हस्तिनापुर का ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा है। भगवान शांतिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ के व्यवन, जन्म, दीक्षा एवं कैवल्य कल्याणक यहीं पर हुए थे। जिस स्थान से चार तीर्थंकरों का सम्बन्ध रहा हो, वह स्थली तो पावनता से आलोड़ित रहती है। श्री भरत चक्रवर्ती से लेकर कुल १२ चक्रवर्ती हुए, जिनमें ६ चक्रवर्तियों ने हस्तिनापुर में जन्म पाया परशुराम का जन्म भी यहीं हुआ। शास्त्रीय उल्लेखानुसार प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव ने यहां राजा श्रेयांस कुमार द्वारा एक वर्ष की अपनी सुदीर्घ तपस्या का पारणा किया था। तीर्थंकर ऋषभ मुनि-दीक्षा स्वीकार करने के बाद एक वर्ष तक शुद्ध आहार उपलब्ध नहीं कर पाये। सुपात्रदान की विधि से अनभिज्ञ होने के कारण भक्तजन उन्हें रत्न, हाथी, घोड़े इत्यादि भेंट करना चाहते थे, लेकिन एक श्रमण के लिये भला इनकी क्या आवश्यकता । ऋषभदेव को लगभग ४०० दिनों तक निराहार रहना पड़ा। अन्त में नरेश श्रेयांस ने इक्षुरस प्रदान कर भगवान के सुदीर्घ तप का पारणा करवाया । यह तप वर्षीतप कहलाता है। हस्तिनापुर में भगवान् द्वारा यह पारणा किये जाने के कारण ही लोग यहां आकर वर्षीतप का पारणा करते हैं । यह दिन अक्षय पुण्य का दिन माना जाता है, इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहते हैं । सम्राट अशोक के पौत्र संप्रति ने यहां जिनालयों का निर्माण करवाया था। आचार्य श्री यक्षदेव सूरि, सिद्धसूरि, रत्नप्रभसूरि कक्कसूरि जैसे प्रभावक आचार्यों का यहां संघ सहित आगमन हुआ था। आचार्य श्री जिनप्रभ सूरि सं.१३३५ में एक यात्रा संघ लेकर Jain Education International 132 For Private & Personal Use Only तीर्थाधिराज श्री शांतिनाथ भगवान मंदिर के शिखर www.jainelibrary.org
SR No.003646
Book TitleVishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year1996
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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