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________________ सर्वोदय तीर्थ - राजकुमार बड़जात्या भगवान महावीर का तीर्थ सर्वोदय तीर्थ है। किसी भी तीर्थ या धर्म में सर्वोदयता तभी आ सकती है, जब उसमें सामप्रदायिकता, पारस्परिक वैमनस्य, ईर्ष्या और हिंसा आदि के लिए कोई स्थान हो । आज समाज एवं देश में चारों ओर अशान्ति, अभाव और वैर-विरोध के बादल मंडरा रहे है । इसके कारणों की खोज करें तो ज्ञात होगा कि आज मानव ने मानवता और धर्म भावना को तिलांजलि देकर अधर्म, अनैतिकता, हिंसा, संग्रहवृति और विवाद को अपना लिया है, किन्तु यदि व्यक्ति अहिसा, अपरिग्रह ओर अनेकान्त को अपना लें तो आज भी घर, समाज, राष्ट्र और विश्व में शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है। परस्पर सहायता, सहानुभूति, एकता, उदारता, प्रेम, प्रामाणिकता, संतोष तथा संयम सदृश सद्गुणों की यदि अभिवृद्धि हो जाये तो सर्वत्र शान्ति, सौहार्द एवं सौमनस्य का वातावरण स्थापित हो सकता है। अहिंसा एक ऐसी सुन्दर व्यवस्था है जो प्राणीमात्र को बिना भेदभाव के अपना पूर्ण विकास करने के समान अवसर प्रदान करती है। प्राणीमात्र का हित सम्पादन करने वाली अहिंसा मानव को मानवता का पाठ पढ़ाती है तथा उसे सत्यनिष्ठ, निश्चल, निर्लोभ, क्षमाशील और आत्मोन्मुख बनने का संकेत प्रदान करती है। अहिंसा मानव को विश्वप्रेम एवं विश्व बंधुत्व के अवसर प्रदान कराती है। जिसमें भय, कायरता, घृणा, द्वेष, निराशा, शोषण, मायाचार, निर्दयता, झूठ और बेईमानी आदि कुप्रवृतियों का अभाव रहता है। भगवान् महावीर की वाणी का दिव्य उद्घोष यही है कि जीव मात्र में स्वतंत्र आत्मा का अस्तित्व विद्यमान है। प्रत्येक जीव को जीवित रहने का और आत्मस्वातंत्र्य का उतना ही अधिकार है जितना दूसरों को । जैसे अपने जीवन में तुम्हें कोई बाधा सह्य नहीं उसी प्रकार दूसरों के जीवन में भी आप बाधक मत बनो । अहिंसा में आस्था रखने वाले साधक की यही भावना रहती है - सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपा परत्वं । माध्यस्थ भावं विपरीत वृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ।। अहिंसा के आधार है - प्रेम, करुणा, आत्मीयता, त्याग और ममता । जहाँ अहिसा है वहाँ अभय है, करुणा है । जहाँ प्रेम है, वहाँ भय कैसा ? आज का मनुष्य एवं समाज अहिंसा के गुणगान तो बहुत करता है परन्तु वह अहिंसा लोगों के पारस्परिक व्यवहार में नहीं उतर सकी है। आज कथनी और करनी में बहुत अन्तर आ गया है । अहिंसा का यथार्थ स्वरूप राग-द्वेष, क्रोध-मान-माया-लोभ, भीरूता, शोक और घृणादि विकृत भावों का परित्याग करना है। संसार के सभी धर्मों ने अहिंसा की महत्ता को स्वीकार किया है । अपरिग्रह और परिग्रह परिमाण व्रत सर्वोदय तीर्थ का दूसरा आधार स्तम्भ है । आज का मानव 138 Jan Education International For Private & Personal use only www.janelibrary.org
SR No.003645
Book TitleTamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2001
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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