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________________ [४] चैत्यवंदन संग्रह - परमातम परकाशथी अ, प्रगटे परमानंद, श्री विजयराज सूरीश्वरु, दान अधिक आणंद...३... तरण तारण कुगति वारण, सुगति कारण जगगुरु, भवभ्रमण करता मनुष्यना, वांछित करवा सुरतरु, संसार तापथी तप्त जंतु, जातने छाया करू, छत्राकृति सिद्धाचले, ऋषभेश कलेश मनोहरु...१ श्री ऋषभदेव प्रपौत्र द्राविड, वारिखिल्ल सहीदरा, आदिनाथ भक्त सुवल्गु तापस, बोधथी तापस वरा, चारण मुनिवर साथ सर्वे, तीर्थ करवा संचर्या, प्रतिबोधथी मुनिराजना, सर्वे मुनीशपणुं वर्या...२ पुन्य पुज सम पुंडरीकगीरि, निरखता नयणे ठरी, उल्लास पामी दोष वामी, हर्षथी हृदये धरी, वंदन करीने आवीया, गीरिराज उपर पद चरी, रायण ने आदिदेव चरणे, प्रेमे प्रदक्षिणा करी...३ पुंडरीक गणधर साथ, आदिनाथने पाये पडी, चारण मुनिना कहेणथी, लगावी ध्यान तणी झडी, दशक्रोड मुनिवर साथ, कार्तिक पुनमे मुक्ति जडी, हंसावतार तीर्थ स्थाप्यु, हंस देवे तिण घडी...४ (६) श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विश्वतारक जाणीये अकलंक शक्ति सुरगीरि, विश्वानंद वखाणीये, मेरु महीधर हस्तगीरिवर, चर्चगीरिधर चिह्नो, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गीरि गुणवंत...१... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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