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________________ [१४] चैत्यवंदन संग्रह चैत्री पुनमने दिने अ, पाम्या पद महानंद, ते दिनथी पुंडरीकगीरि, नाम दान सुखकंद...३... [२] श्री शत्रुजय माहत्म्यनी, रचना कीधी सार, पुंडरीकगीरीना स्थापनार,प्रथम जिन गणधार...१... अक दिन वाणी जिन तणी, सुणी थयो आनंद, आव्या शत्रुजयगीरि, पंच क्रोड सहरंग...२... चैत्री पुनमने दिने अ, शिवशं कीधो योग, नमीओ गीरिने गणधरू, अधिक नहीं त्रिलोक...३... [३] आदीश्वर जिनरायनो, पहेलो जे गणधार, पुंडरीक नामे थयो, भविजनने सुखकार...१... चैत्री पुनमने दिने, केवलसीरि पामी, इण गीरि तेहथी पुंडरीक, गीरि अभिधा पामी...२... पंचकोडि मुनिशुं लह्याओ,करि अनशन शिवठाम, ज्ञानविमलसूरि तेहना, पय प्रणमे अभिराम...३. रायण पगला नु चैत्यवंदन आदि जिनेश्वर रायना, छे पगला मनोहार, भाव सहित भक्ति करे, पहोंचाडे भवपार...१. रायण रुख तळे बिराजी, दीओ जगने संदेश, भवियण भावे जुहारीओ, दूर करे संक्लेश...२... पगले पडोने विनवू, पूरजो मारी आश, ज्ञान तणी विनती सुणो, देजो शिवपद वास...३... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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