SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थ-जिन विशेष [११] मुक्तिनिलय शतकूट नाम, पुष्पदंत भणीजे, महापद्मने सहस्रपत्र, गीरिराज कहीजे...२... इत्यादिक बहु भांतिसुं ओ, नाम जपो निरधार, धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार...३... (२१) चैत्रीपुनमने दिने, जे इण गीरि आवे, . आठ सत्तर बहु भेदशं, जे भक्ति रचावे...१... आदीश्वर अरिहंतनी, तस सघलां कर्म, दूर टले संपद मले, भांजे भव भर्म...२... इह भव परभव भवे भवे, ऋद्धि वृद्धि कल्याण, ज्ञानविमल गुणमणि तणो, त्रिभुवन तिलक समान....३ (२२) शत्रुजय शिखरे चढी स्वामि, कंइये हुं अचिशं, रायण तरुवर तले पाय, आणंद चरचिशुं... नहवण विलेपन पूजना, करी आरती उतारीश, मंगल दीपक ज्योति थुति, करी दूरित निवारीश...२... धन धन ते दिन माहरो अ,गणीश सफल अवतार, नय कहे आदीश्वर नमो, जिम पामो जयकार...३ (२३) जोयण शत परिणाम अक, जे पहिले आरे, बोजे आरे जोयण जेह, अॅशी विस्तारे...१... तिम त्रीजे जोयण साठ, चोथे पचाश, पांचमें आरे बार सार, विस्तार छे जास...२... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003633
Book TitleChaityavandan Sangraha Tirth Jin vishesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy