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________________ दसवेआलियं (दशवकालिक) ४४६ अध्ययन ६ (द्वि०उ०) : श्लोक १८-२० टि० २३-२८ श्लोक १८ : २३. श्लोक १८: आसातना होने पर क्षमा-याचना करने की विधि इस प्रकार है--शिर झुकाकर गुरु से कहे-मेरा अपराध हुआ है उसके लिए मैं "मिच्छामि दुक्कड" का प्रायश्चित्त लेता हूँ। आप मुझे क्षमा करें। मैं फिर से इसे नहीं दोहराऊंगा'। २४. ( उवहिणामविख): यहाँ मकार अलाक्षणिक है। २५. किसी दूसरे प्रकार से ( अवि ख ) : यह अपि शब्द का भावानुवाद है। यहाँ 'अपि' संभावना के अर्थ में है। अगस्त्य घुणि के अनुसार 'गमन से उत्पन्न वायु से' और जिनदास चूणि के अनुसार 'काया और उपधि-दोनों से एक साथ स्पर्श हो जाने पर' यह 'अपि' का संभावित अर्थ है। श्लोक १६: २६. पाठान्तर: उन्नीसवें श्लोक के पश्चात् कुछ आदशों में 'आलवते.........' यह श्लोक है। किन्तु चूणि और टीका में यह व्याख्यात नहीं है। उत्तराध्ययन (१.२१) में यह श्लोक है। प्रकरण की दृष्टि से व्याख्या के रूप में उद्धृत होते-होते मूल में प्रक्षिप्त हो गया ऐसा संभव है। २७. ( किच्चाणं ग ) : कृत्य' का अर्थ वन्दनीय या पूजनीय है । आचार्य, उपाध्याय आदि वन्दनीय गुरुजन 'कृत्य' कहलाते हैं। चूणियों में और वैकल्पिक रूप में टीका में 'किच्चाई' पाठ माना है। उसका अर्थ है-आचार्य, उपाध्याय के द्वारा अभिलषित कार्य । श्लोक २०: २८. काल ( कालं क ) : काल को जानकर'- इसका आशय यह है कि शिष्य आचार्य के लिए शरद् आदि ऋतुओं के अनुरूप भोजन, शयन, आसन आदि १-जि०० पृ० ३१५ : सो य उवाओ इमो-सिरं भूमीए निवाडेऊण एवं वएज्जा, जहा–अवराहो मे, मिच्छामि दुक्कडं, खंतव्वमेयं, णाहं भुज्जो करिहामित्ति । २-० चू० : अविसद्देण अच्चासण्णं गमण वायुणा वा। ३–जि० चू० पृ० ३१५ : अविसद्दो संभावणे वट्टइ, कि संभावयति ?, जहा दोहिंवि कायोवहीहि जया जमगसमग घट्टिओ भवइ । ४- हा० टी० प० २५० : ‘कृत्यानाम्' आचार्यादीनाम । ५- (क) अ० चू० : आयरियकरणीयाणि । (ख) जि. चू० पृ० ३१५ : जाणि आवरियउवज्झायाईणं किच्चाई मणरुइयाणि ताणि । (ग) हा० टी० प० २५० : 'कृत्यानि वा' तदभिरुचितकार्याणि । www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education Intemational
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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