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________________ आयारपणिही (आचार-प्रणिधि) ४०५ ४०५ अध्ययन ८ : श्लोक ४० टि० १०८ जे णो जे णो जे णो करंति कारयंति समणुजाणति मणसा वयसा कायसा णिज्जिय | णिज्जिय णिज्जिय णिज्जिय आहारसन्ना भयसन्ना मेहुणसन्ना परिग्गहसन्ना ५०० ५०० ५०० श्रोत्रेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय | घ्राणेन्द्रिय | रसनेन्द्रिय | स्पर्शनेन्द्रिय १०० | १०० १०० पृथिवी गयु वनस्पति | द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय | पंचेन्द्रिय १० क्षान्ति मुक्ति आर्जव मार्दव लाघव सत्य संयम तप ब्रह्मचर्य | अकिञ्चन २ १० श्रमण सूत्र (परिशिष्ट) १०८. कूर्म की तरह आलीन-गुप्त और प्रलीन-गुप्त ( कुम्मो व्व अल्लीणपलीणगुत्तो ग ) : ___अगस्त्य चूणि के अनुसार 'गुप्त' शब्द 'आलीन' और 'प्रलीन' दोनों से सम्बद्ध है अर्थात् आलीन-गुप्त और प्रलीन-गुप्त । कूर्म की तरह काय-चेष्टा का निरोध करे, वह 'आलीन-गुप्त' और कारण उपस्थित होने पर यतनापूर्वक शारीरिक प्रवृत्ति करे, वह प्रलीन-गुप्त कहलाता है । जिनदास चूणि के अनुसार आलीन का अर्थ थोड़ा लीन और प्रलीन का अर्थ विशेष लीन होता है। जिस प्रकार कूर्म अपने' अङ्गों को गुप्त रखता है तथा आवश्यकता होने पर उन्हें धीमे से फैलाता है, उसी तरह श्रमण आलीन-प्रलीन-गुप्त रहे । १-अ० चू० पृ० १६५ : कुम्मो कच्छभो, जवा सो सजीवितपालणत्यमंगाणि कभल्ले संहरति, गमणातिकारणे य सणियं पसारेति; तहा साधू वि संजमकडाहे इंवियप्पयारं कायचेटू नि भिऊण अल्लोणगुतो। कारणे जतणाए ताणि चेव पवतयंतो पल्लीणगुत्तो। गुत्तसद्दो पत्तेयं परिसमप्पति । २-(क) जि० चू० पृ० २८७ : जहा कुम्मो सए सरीरे अंगाणि गोवेऊण चिट्टइ, कारणेवि सणियमेव पसारेइ, तहा साहवि अल्लीण पलीणगुत्तो परक्कमेज्जा तवसंजममित्ति, आह-आलीणाणं पलीणाणं को पइविसेसो ?, भण्णइ, ईसि लोणाणि आली. णाणि, अच्चत्थलीणाणि पलीणाणित्ति । (ख) हा० टी० प० २३५ : 'कूर्म इव' कच्छप इवालीनप्रलीनगुप्तः अङ्गोपाङ्गानि सम्यक् संयम्येत्यर्थः । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003625
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Dasaveyaliyam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1974
Total Pages632
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size17 MB
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