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________________ ४५. उदाहु इत्थीपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ४६. अहवा इत्थीपच्छाकडो य पुरिसपच्छाकडा य बंधति ४७. अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडो य बंधइ ४८. अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा य बंधति ४६. अहवा इत्थीपच्छाकडो य नपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ५०. अहवा इत्थीपच्छाकडो य नपुंसगपच्छाकडा य बंधंति ४५. *अथवा इक स्त्री-पच्छाकडो, पुरुष-पच्छाकडो एको । इरियावहि बांधै अछ, प्रथम भंग ए पेखो।। ४६. अथवा इक स्त्री-पच्छाकडो, बहु पुरुष-पच्छाकडा जाणी। इरियावहि बांधै अछ, द्वितीय भंग ए ठाणी ॥ ४७. अथवा बहु स्त्री-पच्छाकडा, पुरुष-पच्छाकडो एको । इरियावहि बांधे अछ, तृतीय भंग सुविशेखो। ४८. तथा बहु स्त्री-पच्छाकडा, बहु पुरुष-पच्छाकडा जेहो । इरियावहि बांधै अछ, तुर्य भंग छै एहो । ४६ अथवा इक स्त्री-पच्छाकडो, एक नपुंसक ताह्यो । पच्छाकडो बांधै अछ, ए पंचम भंग कहायो । ५०. अथवा इक स्त्री-पच्छाकडो, बहु नपुंसक वेदो । पच्छाकडो बांधे अछै? ए भंग छट्टो भेदो। ५१. तथा बहु स्त्री-पच्छाकडा, एक नपुंसक जोयो । पच्छाकडो बांधे अछै? सप्तम भंगे सोयो । ५२. तथा बहु स्त्री-पच्छाकडा, बहु नपंसक जाणी । पच्छाकडा बांध अछै ? अष्टम भंगे पिछाणी ॥ ५३. अथवा इक पुं-पच्छाकडो, एक नपुंसक भालो । पच्छाकडो बांधे अछ? नवमें भंगे न्हालो ।। ५४. अथवा इक पुं-पच्छाकडो, बहु नपुंसक मंतो । पच्छाकडा बांधै अछै? दसमों भंग दीपंतो॥ ५५. तथा बहु पुं-पच्छाकडा, एक नपुंसक संगो । पच्छाकडो बांधै अछै? एकादसमों भंगो ।। ५६. तथा बहु पु-पच्छाकडा, बहु नपुंसक जेही । पच्छाकडा बांधै अछ, द्वादसमों भंग एही। ५१. अहवा इत्थीपच्छाकडा य नपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ५२. अहवा इत्थीपच्छाकडा य नसगपच्छाकडा य बंधंति ५३. अहवा पुरिसपच्छाकडो य नपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ५४. अहवा पुरिसपच्छाकडो य नपुंसगपच्छाकडा य बंधति ५५. अहवा पुरिसपच्छाकडा य, नपुंसगपच्छाकडो य बंधइ ५६. अहवा पुरिसपच्छाकडा य, नपुंसगपच्छाकडा य बंधंति ५७. त्रिकयोगे पुनस्तथैवाष्टौ (वृ० प० ३८६) सोरठा ५७. द्विक-संयोग सुघाट, द्वादश भंगा आखिया । त्रिक-संयोगिक आठ, प्रवर भंग कहिये हिवै।। *लय : राम सोही लेवे सीता तणी ढाल १५० गाथा ४६ से ६६ तक की जोड़ जिस पाठ के आधार पर की गई है, उसमें प्रत्येक विकल्प को स्वतन्त्र रूप से दिखाया गया है। अंगसुत्ताणि भाग दो, शतक ८।३०५ में पाठ संक्षिप्त है । वहां इस पाठ के छब्बीस भंगों में प्रथम छह भंगों को स्वतंत्र रूप से रखकर आगे के भंगों में चार-चार भंग एक साथ लिए गए हैं। इसके लिए प्रत्येक भंग के आगे ४ का अंक लगा दिया गया है। भगवती की जोड़ में सब भंग अलग-अलग हैं । इसलिए इन भंगों से सम्बन्धित गाथाओं के सामने पादटिप्पण में दिए गए पाठ को उद्धत किया गया है। मूल पाठ में भंग के प्रारंभ में 'उदाहु' पाठ है, किन्तु पाद टिप्पण में 'अहवा' है । अर्थ की दृष्टि से दोनों शब्दों में कोई अन्तर नहीं है। अतः जोड़ के सामने पाद-टिप्पण का पाठ यथावत् रख दिया गया है। ४४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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