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________________ हा 'भिष्ट भागल विकल हुआ तके, करें असुध बेहरण री थाप चोर ज्यू अशुद्ध अर्थ हेरता, थोथा करें अज्ञानी विलाप ॥ १ ॥ किहांइक पाट छै सूतर में, तिण रो न्याय मेलै नहि मूढ । साघां ने अध बेहरायां धर्म कहै, एहवी करें अज्ञानी रूढ ॥ २ ॥ साधां ने असुध वेहरावियां, तिणमें धर्म नहि अंसमात । धर्म कहै असुध वहिरावियां, तिण रा घट में घोर मिथ्यात ॥ ३॥ च्यार आहार सचित ने असूझता, श्रावक वेहराव जाण जाण । तिण में पाप अलप बहोत निर्जरा, एहवी करें अज्ञानी ताण ॥४॥ ए पाठ भगोती सूतर मकै, शतक आठमा मांय । तिण रो अर्थ करणवालो पिण डरपियो, तिण केवलियां नें दियो भलाय ॥ ५ ॥ देवै aura अर्थ करें इहां तिणरो केवली जाणे कदा कोइ बुधवंत बुध थकी, उनमान थी जाण अफासु थापियां, वीर वचन सूतर सू पिण मिले नहीं, ते प्रतष दीसे साध ने सचित नें असुध दियां, कहै बोहत निरजरा तिण ऊंधी श्रद्धा रो निरणो कहूं, ते सुणजो चुपचाप ॥ ८ ॥ अलप पाप । (ध्रुपदं ) *असुध वहरण री बाप करे ते अज्ञानी ( असुध वहरण री थाप करो मति कोई ) अफासु आहार ने सचित को जिण, न्याय । बताय || ६ || ते साधां नै श्रावक जाणे वेहराव, विगटाय | अन्याय ||७|| अणेस णिज्जेणं ते असूझतो पावै । Jain Education International तिण र अल्प पाप ने बोहत निरजरा बतावे ॥२॥ ** लय: आ अनुकम्पा जिन आज्ञा में सामान्य । जयाचार्य ने उक्त दोनों मंतव्यों को विरुद्ध बताते हुए टीकाकार के उस अभिमत का उल्लेख किया है, जिसमें वृत्तिकार ने इस प्रसंग को केवलिगम्य कहकर छोड़ दिया है । आचार्य भिक्षु ने अपनी कृति 'श्रद्धा निर्णय की चौपई' में इस संबंध में सांगोपांग विवेचन किया है। उन्होंने कारण या अकारण किसी भी स्थिति में माधु को अप्राक और अनेषणीय आहार देने में अल्प पाप, बहुत निर्जरा के सिद्धान्त का खण्डन कर अपनी प्रज्ञा से भगवती के उक्त पाठ की व्याख्या की है जपाचार्य ने श्रद्धा-निर्णय की चौपई की २१ वी डाल, जिसकी दोहों सहित ७० गाथाएं हैं, अविकल रूप से इस प्रसंग में उद्धृत की है। उस ढाल की अलग पहचान के लिए गाथाओं के अंक उनसे पहले न देकर बाद में दिए गए हैं। ५. भगवती ८।२४६ For Private & Personal Use Only श० ८, उ० ६, दा० १४४ ४०३ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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