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________________ ७. जिन कहै काल अतोत जे. पडिकमै निवर्त्त, तास ८. वर्त्तमान में संवरै, हिंसा पाप करे नहीं. ६. अनागत पच वलि, हिंसा हूं करसूं नहीं, कोधो निंदा करि प्राणातिपात । विछतात ॥ वर्तमान जे काल । संबर अर्थ निहाल ॥ Jain Education International काल अनागत त्याग प्रतिज्ञा मांहि । ताहि ॥ *जय जय जय जय ज्ञान जिनेंद्र नों रे ॥ (ध्रुपदं ) १०. गया काल नां प्राणातिपात ने रे, पटिकमतो स्यूं प्रयोग स्यं त्रिविध त्रिविधे करि पडिकमै रे, तीन करण तीन जोग ? ११. करण करावण ने अनुमोद, कला करण ए तीन । मन वच काया जि जोगे करी, अंक तेतीस नो लीन' ॥ , , १२. त्रिविध दुविध करने जे पडिकमै, तोन करण बे जोग । अंक वत्तीय तणुं ए आलियो प्रगटपणं प्रयोग ॥ १३. त्रिविध एकविध करिनैं पडिकमै तीन करण इक जोग । अंक को छेए इकतीस नों ओलख दे उपयोग ॥ १४. दुविध-त्रिविध करिनं जे परिकर्म करण दोष जोग तीन । अंक तेवीस नै काल अतीत नै निंदै जेह दुचीन ॥ १५. दुविध दुविध करिनें जे पडिकमै, दोय करण जोग दोय । अंक बावीसे काल अतीत नों, अब कृत निर्दे जोय || १६. दुविध एकविध करिने परिकर्म, दोय करण जोग एक । एकवीस ने ए अंके करी, निर्द आण विवेक || १७. इकविध त्रिविध करोनें पडिकमै एक करण त्रिण जोग । तेरम अंके काल जतीत नी, निर्द हिस प्रयोग ॥ १८. इकविध दुविध करोनें पदिकर्म एक करण वे जोन ए द्वादश नैं अंक करी इहां, निंदै टाली सोग ॥ १६. इकविध - एक विधे करि पटिकमै एक करण शक जोग । अंक इग्यार करी हिंसा प्रतं निर्द एह प्रयोग || २०. तेतीस बत्तीस ने इकतीस नों, तेवीस नें बावीस । इकवीस तेर बार इग्वार ना विकल्प नव पूछीस । *लय : साधजी नगरी में आया सदा भला रे १. टीकाकार ने मन, वचन और काय को करण कहा है तथा कृत, कारित और अनुमत को योग कहा है । जयाचार्य ने जोड़ में इसका व्यत्यय करते हुए मन, वचन और काय को योग तथा कृत, कारित और अनुमत को करण कहा है। यह सापेक्ष चिन्तन है । गोयमा ! तीयं पडिक्कमति अतीतकालकृतं प्राणातिपात द्वारेण निवर्त्तत इत्यर्थः । ८. पडुप्पन्नं संवरेति प्रत्युत्पन्नं - वर्तमानकालीनं प्राणातिपातं 'संवृणोति' न करोतीत्यर्थः । ( वृ० प० ३७०) ६. अणामयं पच्चक्खाति । अनागतं भविष्यत्कालविषयं करिष्यामीत्यादि प्रतिजानीते । ७. 'प्रतिक्रामति' तो निदा( वृ० प० ३००) For Private & Personal Use Only ( श० ८ २३६ ) 'प्रत्याख्याति' न ( वृ० प० २७० ) १०. ती परिमाणे कि तिविहं तिविप मति ? ११. 'त्रिविधं' त्रिप्रकारं करणकारणानुमतिभेदात् प्राणातिपात योगमिति गम्यते, त्रिविधेन मनोवचनकायलक्षणेन करणेन प्रतिक्रामति । ( वृ० प० २७०) १२. तिविहं दुविणं पडिक्कमति ? १२. पिमिति ? १४. दुविहं तिवि पस्किमति ? १५. दुहिं विपक्किमति ? १६. दुविहं एगविहे पडिक्कमति ? १७. एगतिविि १८. एहिं विपदिकमति ? १९. एगवि एमवि पक्किमति ? श०८, उ०५, ढा० १४२ ३८६ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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