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________________ ६५. अवधि ज्ञान नां अलद्धिया नी, गोयम पूछा करी पिछानी। जिन कहै ज्ञानी पिण छ तेह, अज्ञानी पिण छै वलि जेह ॥ ६६. अवधि ज्ञान वर्जी में एम, च्यार ज्ञान नी भजना तेम । भजना तीन अज्ञान नी भणिय, अवधिज्ञान वर्जी इम गणिय ।। ६७. पूछा मनपज्जव लद्धिया नीं, जिन कहै ज्ञानी छै न अज्ञानी। केइक त्रिण ज्ञानी मनिराय, केइक चिउं ज्ञानी सुखदाय ॥ ६८. जे त्रिण ज्ञानी ते इम जाणी, मति श्रुत ने मनपज्जवनाणी। जे चउनाणी ते इम थाय, मति श्रत अवधि रु मनपर्याय ।। ६६. ते मनपज्जव अलद्धिया नीं, पूछा नों उत्तर इम जानी। मनपज्जव वर्जी चिहुं ज्ञान, तीन अज्ञान नी भजना जान ।। ७०. केवलज्ञानलद्धियो भगवान ! स्य ज्ञानी अज्ञानी जान ? जिन कहै ज्ञानी छै न अज्ञानी, नियमा एक केवल नी मानी ।। ७१. पूछा केवल नां अलद्धिया नीं, केवलज्ञान वर्ज पहिछानी। च्यार ज्ञान ने तीन अज्ञान, ए बेहुं नी भजना जान ।। ६५. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा । गोयमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि । ६६. एवं ओहिनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। (श० ८।१५२) ६७. मणपज्जवनाणलद्धियाणं पुच्छा। गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी। अत्थेगतिया, तिण्णाणी, अत्थेगतिया चउनाणी। ६८. जे तिण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, मण पज्जवनाणी । जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपज्जवनाणी। ६६. तस्स अलद्धीयाणं पुच्छा। गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि। मणपज्जनाणवज्जाइं चत्तारि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए। (श० ८।१५४) ७०. केवलनाणलद्धियाणं भंते ! जीवा कि नाणी अण्णाणी? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । नियमा एगनाणीकेवलनाणी। (श० ८।१५५) ७१. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि । केवलनाणवज्जाई चत्तारि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए । (श० ८।१५६) ७२. अण्णाणलद्धियाणं पुच्छा। गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी । तिण्णि अण्णाणाईभयणाए। (श० ८।१५७) ७३. तस्स अलद्धियाणं पुच्छा। गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी। पंच नाणाई भयणाए। ७४. जहा अण्णाणस्स य लद्धिया अलद्धिया य भणिया, एवं मइअण्णाणस्स सुयअण्णाणस्स य लद्धिया अलद्धिया य भाणियव्वा । ७५. विभंगनाणलद्धियाणं तिण्णि अण्णाणाई नियमा। तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए, दो अण्णाणाई नियमा। (श० ८।१५८) ७६. दंसणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी ? अण्णाणी? गोयमा ! नाणी वि अण्णाणी वि। पंच नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई-भयणाए। (श० ८।१५६) ७२. पूछा अनाण नां लद्धिया नीं, जिन कहै नो ज्ञानी छै अज्ञानी। भजना तीन अज्ञान नी भाल, तिण में बे किहां तीन निहाल ।। ७३. पूछा अज्ञान नां अलद्धिया नीं, जिन कहै ज्ञानी छ न अज्ञानी। पंच ज्ञान नी भजना पेख, बे त्रिण चिउं किहां एक विशेख ॥ ७४. अनाणलद्धिया अल द्धिया भणिया, तिणहिज विध आगल ए थणिया । मति अज्ञान में श्र त अज्ञान, तसु लद्धिया अलद्धिया जान ।। ७५. पूछा विभंग तणां लद्धिया नी, तीन अज्ञान नी नियमा जानी। तास अलद्धिया में पंच नाण, भजना नियमा दोय अन्नाण ॥ ७६. दर्शणलद्धिया प्रभु ! स्यू नाणी? जिन कहै नाणी – अन्नाणी। पंच ज्ञान में तीन अज्ञान, भजनाई भणिवो बुद्धिवान ॥ ३५४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational Jain Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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