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________________ ५४. निश्चे जे प्रभु! कर्म वेदस्ये, ते निर्जरस्ये जे निर्जरस्ये तेज वेदस्ये ? जिन कहै इस न ५५. किण अर्थे ? तब श्री जिन भाखै, वेदस्ये ते कर्म सारो । निर्जरस्ये नोकमं भणी इज तिण अर्थ इम धारो ॥ ५६. एवं नारकी जाव वेदना ने निर्जरा यतनी ५७. प्रभु! वेदना समय से जेह, ते निर्जरा समय जे निर्जरा समयो होय, ते वेदना ५८. तब भाखै श्री जिनराय, अर्थ समर्थ for अर्थे ए प्रभु ! वाय? हिव श्री जिन ५६. जे समय वे ज्यांही ते समय निर्जरे वेदे छै जे समय निर्जरं जेह, ते समय वेदं नहि ६४. नारकी जे समय जे समय निर्जरं कहिये । सद्दहिये ॥ वैमानिक, काल त्रिहुं ₹ नहि कहिये, निर्जरा वेदना २४६ वेदंत, ते समय जेही, ते समय Jain Education International मांही । नांही ॥ ६०. वेदै समय अनेरा मांय, अन्य समय निर्जरा धाय । वेदना नो समय अन्य होय, निर्जरा नो समय अन्य जोय ॥ ६१. तिण अ अर्थे को ए मर्म, जे समय वेदे जे कर्म । ते समय निर्जरै न ताय, निर्जरै ते समय न वेदाय ॥ ६२. नारकी नैं हे भगवान ! जे समय वेदं कर्म जान तेहिज समय विषे कहिवाय निर्जरा ते कर्म नीं थाय ? ६३. जे समय निर्जरा जेह ते समय वेदना तेह ? जिन कहे अर्थ समर्थ नांय, किण अर्थ ? तब श्री जिन वाय ।। कहेह | समयो जोय ? ए न कहाय । दाखे न्याय || नाही । । तेहू ।। ६५. अन्य समय विषे वेदंत, अन्य समय वेदना नों समय अन्य जोय, निर्जरा नों ६६. तिण अर्थे जे समय विचार, वेदना निर्जरा नों न्यार । इम जाव वैमानिक तांई, अर्थ समझ लेवो मन मांही ॥ नहीं निर्जरंत । वेदै नहिं तेही ॥ विषे निर्जरंत | समय अन्य होय ॥ सोरठा ६७. वेदनवंत विमास, किणहि प्रकार करी प्रभु । कला सास्वता तास, सूत्र हि हिवै सास्वत तणुं ॥ ५४. से नूणं भंते! जं वेदिस्संति तं निज्जरिस्संति ? जं निज्जरिस्संति तं वेदिस्संति ? गोयमा गो हग सम ५५. से केणट्ठेणं जाव नो तं वेदिस्संति ? गोयमा ! कम्मं वेदिस्संति, नोकम्मं निज्जरिस्संति । सेते जायनो तं निरिति । ५६. एवं नेरइया वि जाव वेमाणिया । (To WCX) ४८. पोइट्ठे समट्ठे । से के भंते! ५७. से नृपं भंते! जे वेदगासमए से निश्वरासमए ? वे निरास से बेगाराम ? (०७८६) ( श० ७ ८७ ) (०) ५६. गोयमा ! जं समयं वेदेंति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेंति नो तं समयं वेदेति । ६०. अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि समए निज्जरेंति । अण्गे से वेदणास असे समए । ६१. से तेणट्ठेणं जाव न से वेदणासमए, न से निज्जरासमए । ६२. जे वेदणासमए से निरासमए ? ( श० ७८९ ) ( श० ७१६० ) ******** ६३ जे निज्जरासमए से वेदणासमए ? गोयमा ! णो इणट्ठे समट्ठे । सेकेणट्ठेणं भंते !' ६४. गोयमा ! नेरइया णं जं समयं वेदेति नो तं समयं निज्जरेंति, जं समयं निज्जरेंति नो तं समयं वेदेति For Private & Personal Use Only ६५. अण्णम्मि समए वेदेति, अण्णम्मि समए निज्जरेंति । अण्णे से वेदणासमए, अण्णे से निज्जरासमए । ६६. से तेणट्ठेणं जाव न से वेदणासमए । ( श० ७/६१ ) एवं जाव वैमाणियाणं । (TO GIER) ६७. पूर्वकृतकर्मणश्च वेदना तद्वत्ता च कथञ्चिच्छाश्वतत्वे सति युज्यत इति तच्छाश्वतत्वसूत्राणि । (४० १० २०२) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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