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________________ ८६. जे भाव थो अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नोलादो रह्य । ते द्रव्य भी अप्रदेशि छे, परमाणुभ्युद्गल ने कहा ॥ ८७. जे भाव थी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलादी कहा. ते क्षेत्र थी सप्रदेशि इम, बे आदि परदेशे रा ।। जे भाव श्री अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नजादी का । ते क्षेत्र श्री अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा ॥ रह्य ८६. जे भाव थी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलादिक रा ते काल भी प्रदेशि वे समयादि स्थितिरूपणुं लह्य । १०. जे भाव वी अप्रदेशि इक गुण कृष्ण नीलादिक रहा । ते काल श्री अप्रवेणि इम इक समय स्थितिकपणुं ला ॥ , ६१. *जे द्रव्य थकी छै, प्रदेशि ए खेत्र थकी सिय सप्रदेशि १२. इस काल की पिण, भाव यकी पिण हिव जुजुओ निर्णय, सांभलजो धर ६३. + जे द्रव्य थी सप्रदेशि खंध, दुपदेसियादिक ने कहा । ते खेत्र थी सप्रदेशि इम, बे आदि परदेशे रा ॥ ६४. जे द्रव्य थी सप्रदेशि खंध, दुपदेसियादिक ने कहा । ते खेत्र थी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे रा ॥ ९५. जे द्रव्य थी सप्रदेशि खंध, दुपदेखियादिक ने कहा । ते काल भी प्रदेशि वे समयादि स्थितिरूपणुं ला ॥ २६. जे द्रव्य भी प्रदेशि बंध, दुपदेसियादिक ने कहा । ते काल भी अप्रदेश इम इक समय स्थितिरूपणं हा ॥ ९७. जे द्रव्य श्री सप्रदेति संघ दुपदेखियादिक ने कहा । ते भाव भी प्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक रा ॥ १८. जे द्रव्य भी प्रदेशि संघ, दुपदेखियादिक ने कहा । भाव भी अप्रदेशि इम गुण एक कृष्णादिक रहा ॥ ९६. * जे खेत्र थकी खं ते द्रव्य थी कहिये, प्रदेशि सुविशेषि निश्चेई सप्रदेशि ॥ १००. वलि काल थी भजना, भाव थि भजना जिम द्रव्य थकी तिम, काल भाव थी भी सप्रदेशि वे आकाश पर १०१. जे रहा। ते द्रव्य की प्रदेश नियचं, संध अवगाही का ॥ १०२. द्रव्य अदेशिक प्रमाणु इक आकाश विषे रहे। ते भणी खेत्र थि सप्रदेशे, खंध नुं रहिवूं लहै || *लय : नमूं अनन्त चौबीसी + लय पूज मोटा भांजे ...... सुविशेषि । अप्रदेशि ॥ Jain Education International एम । | प्रेम ॥ होय । जोय ।। ११. जे दबाओ सपए से खेत्तलो सिय सपएसे सिय अपएसे । ९२. एवं कालओ, भावओ वि । ६६. जे खेत्तओ सपएसे से दव्वओ नियमा सपएसे, १००. कालओ भयणाए, भावओ भयणाए । जहा दव्वओ तहा कालओ, भावओ वि । For Private & Personal Use Only (श० ५२०५) श०५, उ० ८, ढाल ६२ ६१ www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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