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________________ प्राप्ति मानने पर दो आपत्तियाँ आ पड़ेगी। एक ही पिता के दो पुत्र होने पर एक पुत्र के शुभानुष्ठान के प्रभाव से वह पिता शुभलोक में जायेगा अथवा दूसरे पुत्र के अशुभानुष्ठान के प्रभाव से अशुभ लोक में जायेगा ? ऐसी स्थिति में स्वकृत कर्म निष्फल हो जायेंगे। ___ कुत्ते यक्ष है, ब्राह्मण देव है आदि कथन भी युक्तिशून्य ही है। _लोकवादियों की सर्वज्ञ विषयक धारणा भी निराधार एवं भ्रान्तिपूर्ण है, क्योंकि जो पुरुष अपरिमित पदार्थों का ज्ञाता है, अतीन्द्रिय द्रष्टा है, फिर भी यदि सर्वज्ञ नहीं है, तो वह हेय-ज्ञेय-उपादेय पदार्थों का उपदेश देने में समर्थ नहीं हो सकता। ____ अपरिमित पदार्थदर्शी के लिये कीट संख्या का परिज्ञान भी आवश्यक है। अन्यथा बुद्धिमान पुरुष ऐसा आक्षेप करेंगे कि जैसे कीड़ों की संख्या के विषय में अज्ञान है, वैसे ही अन्य वस्तुओं के विषय में भी अज्ञान की पूर्ण सम्भावना है। इस प्रकार सर्वज्ञ का ज्ञान शंकास्पद हो जायेगा, जिससे उनके द्वारा उपदिष्ट हेयोपादेय में निवृत्ति-प्रवृत्ति नहीं हो सकेंगी। अत: अपरिमित पदार्थों का ज्ञाता मानने के साथ उसे सर्वज्ञ मानना भी अत्यावश्यक है। इसी प्रकार सोते समय ब्रह्मा कुछ नहीं जानते एवं जागते समय सब कुछ जानते है, यह कथन भी हास्यास्पद है। क्योंकि सभी प्राणियों में सोते समय अज्ञान दशा और जागते समय ज्ञानदशा होती है। लोकवादियों का यह कथन भी प्रमाण शून्य है कि ब्रह्मा के सोने पर जगत् का प्रलय और जागने पर उदय (सृष्टि) होता है। वास्तव में इस जगत् में दृश्यमान समस्त पदार्थों का एकान्त रूप से न उत्पाद होता है, न विनाश । द्रव्य रूप से जगत् सदैव विद्यमान रहता है, परन्तु पर्याय रूप से पदार्थों में परिवर्तन प्रतिक्षण होता रहता है। ___शास्त्रकार ने इन्हीं भावों को गाथा के उत्तरार्ध में प्रस्तुत किया है। जो त्रस और स्थावर प्राणी इस विश्व में स्थित है, उनका पर्याय परिवर्तन अवश्यम्भावी है। त्रस जीव मरकर त्रस ही होते है अर्थात् इस जगत् में जो जैसा है, वह भवान्तर में भी वैसा ही होता है, यह लोकवादी धारणा मिथ्या है। समस्त जीव अपने कर्मानुसार ही पर्याय को प्राप्त करते है। अत: लोकवाद की मान्यताएँ एकान्त तथा युक्तिविरूद्ध होने से अनवधारणीय है। सूत्रकृतांग सूत्र में वर्णित वादों का दार्शनिक विश्लेषण / 321 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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