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________________ सुप्रभातम् बुज्झिज्ज तिउट्टेज्जा बंधणं परिजाणिया । सूत्रकृतांग सूत्र की इस गाथा में श्रमण भगवान महावीर ने अपने शिष्यों को; प्रकारांतर से सभी भव्य प्राणियों को मोह निद्रा से जागृत करते हुए यह कहा है कि, 'जागो, संबुद्ध होवो तथा अपने बंधनों को जानकर समझकर उन्हें तोड़ो।' - बंधन का स्वरूप समझाते हुए भगवान ने कहा कि परिग्रह ही सबसे कठिन बंधन है तथा रंचमात्र भी परिग्रह रखने वाला भी मुक्त नहीं हो सकता। यहाँ सूत्रकृतांग का उल्लेख कई दृष्टियों से सामयिक है तथा संदर्भ प्राप्त भी । प्रथमतः साध्वी डॉ. नीलांजना श्री जी के शोध प्रबंध का विषय सूत्रकृतांग सूत्र का दार्शनिक समालोचनात्मक अध्ययन है, द्वितीयतः वे स्वयं बंधन के कारणों को जान-समझकर अपरिग्रही संयमी साध्वी जीवन अंगीकार कर चुकी हैं, तथा तृतीयतः सूत्रकृतांग सूत्र जैन वांग्मय का एक अद्भुत दार्शनिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान महावीर के समकालीन सभी भारतीय धर्म-दर्शनों का विवेचनात्मक - विश्लेषणात्मक विवरण मिलता है। धर्म-दर्शन के किसी भी जिज्ञासु विद्यार्थी के लिये सूत्रकृतांग सूत्र का अध्ययन परमावश्यक ही नहीं, अपरिहार्य भी है। साध्वी नीलांजना श्री जी एक प्रतिभा संपन्न व अध्ययनशील व्यक्तित्व की धनी विदुषी साध्वी हैं। उन्होंने इस महत्वपूर्ण ग्रंथ की श्रेष्ठ एवं श्रमसाध्य समालोचना प्रस्तुत की है, जिसके लिये वे साधुवाद की पात्र हैं। किसी भी शोधकर्ता के लिये शोध-प्रबंध तो मात्र सही दिशा में पहला पग भरने जैसा होता है। यह तो शोध कार्य का प्रशिक्षण है, जिसका उपयोग कर शोधार्थी अनेक संशोधनात्मक कार्य करता है। इस प्रतिभाशाली साध्वी जी से संघ और समाज को ही नहीं, समग्र जैन शासन Jain Education International XX For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003613
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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