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________________ 194 मत्त हो गया, तब उससे यह स्वीकृति ले ली कि वह कमलामेला से सागरचन्द्र को मिला देगा | जब शांब का नशा उतरा, तब उसने सोचा- 'ओह! मैंने झूठा वादा कर लिया। क्या अब इससे इन्कार किया जा सकता है ? अब तो मुझे इसका निर्वाह करना ही होगा ।' साध्वी डॉ. प्रतिभा शाम्ब ने प्रद्युम्न से अतिशायी - प्रज्ञप्ति विद्या की मांग की। उसने शाम्ब को विद्या प्रदान कर दी। कमलामेला के विवाह के दिन अपनी विद्या से उसने कमलामेला का प्रतिरूप बनाकर रख दिया और कमलामेला का अपहरण कर लिया तथा रेवत उद्यान में सागरचन्द्र के साथ कमलामेला का विवाह करा दिया गया। वे दोनों वहीं क्रीड़ारत रहने लगे । विद्या से बनाई गई कमलामेला की वह प्रतिकृति विवाह होने पर अट्टहास करती हुई आकाश में उड़ गई। यह देखकर सभी क्षुब्ध हो गए। कमलामेला का अपहरण किसने किया ? यह ज्ञात नहीं हो सका। नारद को पूछने पर उसने कहा"मैंने कमलामेला को रेवत उद्यान में देखा था। किसी विधाधर ने उसका अपहरण किया है।" तब, सेना के साथ कृष्ण कमलामेला की खोज के लिए निकले। शाम्ब विद्याधर का रूप बनाकर युद्ध करने लगा। सारे राजाओं को शाम्ब ने पराजित कर दिया। फिर, वह कृष्ण के साथ युद्ध करने लगा। जब शाम्ब ने देखा कि पिताश्री रुष्ट हो गए हैं, तो वह श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ा । शाम्ब ने श्रीकृष्ण को कहा- "मैंने कमलामेला को गवाक्ष से आत्महत्या करते देखा, इसलिए मैंने कमलामेला का अपहरण किया है", तब श्रीकृष्ण ने उग्रसेन को समझाया। एक बार भगवान् अरिष्टनेमि वहाँ समवसृत हुए। कमलामेला और सागरचन्द्र ने भगवान् से धर्म सुनकर अणुव्रत स्वीकार किया और श्रावक बन गए । सागरचन्द्र अष्टमी, चतुर्दशी आदि को शून्यघरों और श्मशानगृह में एक रात्रि की प्रतिमा करने लगा। धनदेव को जब यह बात ज्ञात हुई, तो उसने तांबे की तीक्ष्ण सुइयों का निर्माण करवाया और शून्यगृह में प्रतिमा में स्थित सागरचन्द्र की बीसों अंगुलियों में सुइयाँ ठोक दी। उपसर्ग जानकर सागरचन्द्र ने समाधिमरण स्वीकार किया और सम्यक्रूप से समतापूर्वक वेदना सहन करते हुए वह कालधर्म को प्राप्त कर देव बना । सागरचन्द्र की चारों ओर खोज होने लगी। खोजते हुए सागरचन्द्र की अंगुलियों में तांबे की सुइयां देखी। तांबे को कूटने वाले से ज्ञात हुआ कि इन सुइयों का निर्माण धनदेव ने करवाया था । रुष्ट होकर राजकुमारों ने धनदेव की खोज की। दोनों की सेनाओं में युद्ध होने लगा। युद्ध देखकर देवरूप ने उन दोनों को उपशान्त किया। कमलामेला भी विरक्त होकर भगवान् अरिष्टनेमि ले पास प्रव्रजित हो गई। आराधनापताका में निर्देशित यह कथानक अन्यत्र भी मिलता है। आनन्द आदि श्रावकों के कथानक आराधनापताका की गाथा क्रमांक 821 में आनन्द आदि श्रावकों की कथा का निर्देश है, जो विस्तार से उपासकदशांग आगम-ग्रन्थ में उल्लेखित है कि किस प्रकार उन्होंने समाधिमरण को स्वीकार किया था । आनन्द गाथापति दस श्रावकों में से भगवान् महावीर का प्रथम श्रावक है, सत्य के प्रति अटूट निष्ठा वाला । वाणिज्यग्राम नगर में आनन्द श्रावक रहता था, जिसकी पत्नी का नाम शिवानन्दा था । आनन्द धनियों में अग्रणी था । वह स्वयं भी दूसरों के काम आता था तथा उसका धन भी दूसरों के काम आता था। गाथापति आनन्द समस्त वाणिज्य ग्रामवासियों के लिए आधारस्तम्भ था। पूर्व पुण्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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