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________________ 410 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन विद्वानों की यह मान्यता है कि ये नियम भिक्षुणी-संघ पर बाद में लादे गए हैं।181 भिक्ष एवं भिक्षणीके पारस्परिक संबंध-सामान्यतया, जैन और बौद्ध-दोनों ही परम्पराओं में इस बात को विशेष रूप से दृष्टि में रखा गया है कि भिक्षु और भिक्षुणियों के पारस्परिक-संबंध ऐसे हों कि उनका चारित्रिक-पतन न हो । सामान्यतया, श्रमण और श्रमणी का एक ही स्थान पर ठहरना निषिद्ध है। इसी प्रकार, श्रमण अथवा भिक्षुक का बिना किसी विशेष परिस्थिति के श्रमणी के आवास पर जाना भी निषिद्ध है। किसी आपवादिकस्थिति को छोड़कर, श्रमण एवं श्रमणी की पारस्परिक-सेवा भी निषिद्ध मानी गई है, यद्यपि कुछ विशेष परिस्थितियों में वे एक-दूसरे की सेवा कर सकते हैं। इसी प्रकार, एक-दूसरे का स्पर्श एवं एकान्त वार्तालाप भी निषिद्ध है। श्रमण केवल जीवन-रक्षा के प्रसंग पर साध्वी का स्पर्श कर सकता है, अन्यथा नहीं। श्रमणी के लिए भी प्रवचन एवं शिक्षण के अवसरों को छोड़कर श्रमण के आवास पर जाना निषिद्ध है। सूर्यास्त के पश्चात् श्रमणी किसी भी स्थिति में श्रमण के आवास पर नहीं जा सकती। दिन में भी श्रमणी उसी स्थिति में श्रमणों के आवास पर रुक सकती है, जबकि वहां समझदार अन्य स्त्री-पुरुषों की उपस्थिति हो। बौद्ध-परम्परा में भी भिक्षु और भिक्षुणियों के पारस्परिक-संबंध को लेकर दस नियमों का प्रतिपादन हुआ है। यदि भिक्षु इनका भंग करता है, तो उसे प्रायश्चित्त का भागी माना जाता है। वे नियम ये हैं - 1. संघ के द्वारा बिना नियुक्त हुए भिक्षुणियों को अष्ट गुरुधर्मों का उपदेश नहीं देना चाहिए। 2. नियुक्त भिक्षु भी सूर्यास्त के पश्चात् भिक्षुणियों को उपदेश न दे। 3. बीमारी आदि अवसर को छोड़कर बिना किसी योग्य अवसर के भिक्षुणियों के आवास पर जाकर उन्हें उपदेश न दे। 4. भोजन एवं औषधि के लाभ के निमित्त भिक्षुणियों को उपदेश न दे। 5. सिवाय बदलने के अपरिचित भिक्षुणी को परिधान आदि न दे। 6. अपरिचित भिक्षुणी से वस्त्र आदि न बनवाए। 7. पूर्व निश्चय के आधार पर भिक्षुणी के साथ यात्रा न करे। यदि मार्ग भयावह हो, तो भिक्षु और भिक्षुणी-संघ साथ-साथ यात्रा कर सकते हैं । 8. केवल नदी पार होने के अतिरिक्त एक ही नौका पर न बैठे। 9. भिक्षुणी के माध्यम से अथवा उनके आहार-लाभ में बाधक बनकर भिक्षा प्राप्त न करे। 10. एकांत में भिक्षुणी के साथ न बैठे। यदि बैठना ही हो, तो एक पुरुष और एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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