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________________ मनोवृत्तियाँ (कषाय एवं लेश्याएँ) 537 शुद्धि की दृष्टि से अनुचित माना गया है। यदि व्यक्ति इन आवेगात्मक-मनोवृत्तियों को अपने जीवन में स्थान देता है, तो एक ओर वैयक्तिक-दृष्टि से वह अपने आध्यात्मिक-विकास को अवरुद्ध करता है और यथार्थ-बोध से वंचित रहता है, दूसरी ओर, उसकी इन वृत्तियों के परिणाम सामाजिक-जीवन में संक्रान्त होकर क्रमश: संघर्ष (युद्ध), शोषण, घृणा (ऊँचनीच काभाव) और अविश्वासको उत्पन्न करते हैं और परिणामस्वरूप सामाजिक जीवनव्यवस्था अस्तव्यस्त हो जाती है, अत: वैयक्तिक-आध्यात्मिक-विकास और सामञ्जस्यपूर्ण सामाजिक जीवन-प्रणाली के लिए आवेगात्मक-मनोवृत्तियों का त्याग आवश्यक है और इनके स्थान पर इनकी प्रतिपक्षी शान्ति, समानता, सरलता (विश्वसनीयता) और विसर्जन (त्याग) की मनोवृत्तियों को जीवन में स्थान देना चाहिए, ताकि वैयक्तिक एवं सामाजिक-जीवन का विकास हो सके। व्यक्ति जैसे-जैसे इन आवेगात्मक-मनोवृत्तियों से ऊपर उठता जाता है, वैसे-वैसे उसका व्यक्तित्व परिपक्व बनता जाता है और जब इन आवेगात्मक-मनोभावों से पूर्णतया ऊपर उठ जाता है, तब वीतराग, अर्हत् या जीवनमुक्त-अवस्था को प्राप्त कर लेता है, जो कि नैतिक-जीवन का साध्य है। आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से इसे परिपक्व व्यक्तित्व (MATURED PERSONALITY) की अवस्था कहा जा सकता है। आवेग-नैतिकता एवं व्यक्तित्व- हमारे व्यक्तित्व का सीधा सम्बन्ध हमारे आवेगों से है। आवेगों की जितनी अधिक तीव्रता होगी, व्यक्तित्व में उतनी ही अधिक अस्थिरता होगी। व्यक्ति जितना आवेगों से ऊपर उठेगा, उसके व्यक्तित्व में स्थिरता एवं परिपक्वता आती जाएगी। इसी प्रकार, व्यक्ति में अनैतिक-आवेगों (कषायों) की जितनी अधिकता होगी, नैतिक-दृष्टि से उसका व्यक्तित्व उतना ही निम्नस्तरीय होगा। आवेगों (मनोवृत्तियों) की तीव्रताऔर उनकीअशुभता-दोनों ही व्यक्तित्वको प्रभावित करती हैं। वस्तुतः, आवेगों में जितनी अधिक तीव्रता होगी, उतनी व्यक्तित्व में अस्थिरता होगी और व्यक्तित्व में जितनी अधिक अस्थिरता होगी ,उतनी ही अनैतिकता होगी। आवेगात्मकअस्थिरताअनैतिकता की जननी है। इस प्रकार; आवेगात्मकता, नैतिकता और व्यक्तित्वतीनों ही एक-दूसरे से जुड़े हैं। यहाँ यह स्मरण रखनाचाहिए कि व्यक्ति के सन्दर्भ में न केवल आवेगों की तीव्रता पर विचार करना चाहिए, वरन् उनकी प्रशस्तता और अप्रशस्तता पर भी विचार करना आवश्यक है। प्राचीन काल से ही व्यक्ति के आवेगों तथा मनोभावों के शुभत्व एवं अशुभत्व का सम्बन्ध हमारे व्यक्तित्व से जोड़ा गया है। आचारदर्शन में व्यक्तित्व के वर्गीकरण या श्रेणी-विभाजन का आधार व्यक्ति की प्रशस्त और अप्रशस्त-मनोवृत्तियों ही हैं। जिस व्यक्ति में जिस प्रकार की मनोवृत्तियाँ होती हैं, उसी आधार पर उसके व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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