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________________ कर्म बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया 413 मनोवैज्ञानिक-योजना दिखाई गई है, वैसी जैन कर्म-सिद्धान्त में नहीं है। उसमें केवल मोहकर्म का अन्य कर्मों से कुछ सम्बन्धखोजा जा सकता है, फिर भी पंचास्तिकायसार में हमें एक ऐसी मनोवैज्ञानिक-योजना परिलक्षित होती है, जिसकी तुलना प्रतीत्यसमुत्पादसे की जा सकती है। 7. महायान-दृष्टिकोण और अष्टकर्म महायान बौद्ध-दर्शन में कर्मों का ज्ञेयावरण और क्लेशावरण के रूप में वर्गीकरण किया गया है। वह जैन-दर्शन के कर्म-वर्गीकरण के काफी निकट है। क्लेशावरण बन्धन एवंदुःख का कारण है, जबकि ज्ञेयावरणज्ञान के प्रकाश यासर्वज्ञता में बाधक है। क्लेशावरण जैन-दर्शन के चारित्रमोह-कर्म और ज्ञेयावरण केवलज्ञानावरण-कर्म से तुलनीय है। वैसे जैन-विचारणा द्वारा स्वीकृत कर्म के दो कार्य आवरण और विक्षेप की तुलना भी क्रमश: ज्ञेयावरण और क्लेशावरण से की जा सकती है। 8. कम्मभव और उप्पत्तिभव तथा घाती और अघाती-कर्म अष्ट कर्मों में आत्मा के स्वभावके आवरण की दृष्टि से चार कर्मघाती और चारकर्म अघाती माने गए हैं, लेकिन यदि नवीन बन्ध या पुनर्जन्म-उत्पादक कर्म की दृष्टि से विचार करें, तो एकमात्र मोह-कर्म ही नवीन बंध या पुनर्जन्म का उत्पादक है, शेष सभी कर्मों का बन्ध मोह-कर्म की उपस्थिति में ही होता है, मोह-कर्म की अनुपस्थिति में कोई ऐसा बन्ध नहीं होता, जिसके कारण आत्मा को जन्ममरण के चक्र में फँसना पड़े। बौद्ध-दर्शन में आत्मा के स्वभावको आवरित करने वालेघाती और अघाती-कर्मों के सम्बन्ध में तो कोई विचार उपलब्ध नहीं है, लेकिन उसमें पुनर्जन्म-उत्पादक कर्म की दृष्टि से कम्मभव और उप्पत्तिभव का विचार अवश्य उपलब्ध है। प्रतीत्य-समुत्पाद की 12 कड़ियों में अविद्या, संस्कार, तृष्णा, उपादान और भाव-पाँच कम्मभव हैं। इनके कारण जन्म-मरण की परम्परा का प्रवाह चलता रहता है। शेष विज्ञान, नामरूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, जाति और जरामरण उत्पत्तिभव हैं, जो अपनी उदय या विपाक-अवस्था में नए बन्धन का सृजन नहीं करते हैं। कम्मभव में अविद्या और संस्कार भूतकालीन जीवन के अर्जित कर्म-संस्कार या चेतना-संस्कार हैं। ये संकलित होकर विपाक के रूप में हमारे वर्तमान जीवन के उत्पत्तिभव (विज्ञान, नामरूप, षडायतन, स्पर्श और वेदना) का निश्चय करते हैं। तत्पश्चात्, वर्तमान जीवन के तृष्णा, उपादान और भवस्वयं कम्मभव के रूप में भावी जीवन के उत्पत्तिभव के रूप में जाति और जरामरण का निश्चय करते हैं। वर्तमान जीवन के तृष्णा, उपादान और भवभावी-जीवन के अविद्या और संस्कार बन जाते हैं, और वर्तमान में भावी-जीवन के लिए निश्चित हुए जाति और जरामरणभावी-जीवन में विज्ञान, नामरूप और षडायतन के कारण होते हैं। इस प्रकार, कम्मभव रचनात्मक कर्मशक्ति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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