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________________ 318 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन की गई कि ये विचारणाएँ अन्ततोगत्वाअकर्मण्यतावाद की ओर ले जाती हैं। अंगुत्तरनिकाय में इनकी समालोचना करते हुए बुद्ध कहते हैं, भिक्षुओं, ये तीन तीर्थकों के ऐसे मत हैं कि जो पण्डितों द्वारा उहापोह किए जाने पर, पूछे जाने पर, चर्चा किए जाने पर, जहाँ कहीं भी जाकर रुकते हैं, वहाँ अकर्मण्यता पर ही जाकर रुकते हैं। कौन से तीन? __ 1. भिक्षुओं ! कुछ श्रमण-ब्राह्मणों का यह मत है, यह दृष्टि है कि जो कुछ भी कोई आदमी सुख-दुःख या अदुःख-असुख का अनुभव करता है, वह सबपूर्वकर्मों के फलस्वरूप अनुभव करता है। तब उनसे मैं कहता हूँ- तो आयुष्मानों! तुम्हारे मत के अनुसार पूर्वजन्म के कर्म के फलस्वरूप आदमी प्राणीहिंसा करने वाले होते हैं, पूर्वजन्म के कर्म के फलस्वरूप आदमी चोरी करने वाले, अब्रह्मचारी, झूठ बोलनेवाले, चुगलखोर, व्यर्थ बकवाद करने वाले, लोभी, क्रोधी, मिथ्यादृष्टि वाले होते हैं। भिक्षुओं! पूर्वकृत कर्म को ही साररूप ग्रहण कर लेने से, यह करना योग्य है और यह करना अयोग्य है, इस विषय में संकल्प नहीं होता, प्रयत्न नहीं होता। जब यह करना योग्य है और यह करना अयोग्य है, इस विषय में ही यथार्थज्ञान नहीं होता, तो इस प्रकार के मूढस्मृति असंयत लोगों का अपने-आपको धार्मिक-श्रमण (नैतिक-व्यक्ति) कहना भी सहेतुक (तर्कयुक्त) नहीं है। 2. भिक्षुओ! कुछ श्रमण-ब्राह्मणों का यह मत है, यह दृष्टि है कि जो कुछ भी कोई आदमी सुख-दु:ख या अदु:ख-असुख अनुभव करता है, वह सब ईश्वर-निर्माण के कारण अनुभव करता है। तब मैं उनसे कहता हूँ- आयुष्मानों ! तुम्हारे मत के अनुसार ईश्वर-निर्माण के फलस्वरूप ही आदमी प्राणीहिंसा करने वाले होते हैं, चोरी करने वाले, अब्रह्मचारी, झूठ बोलनेवाले, चुगलखोर, कठोर बोलनेवाले, व्यर्थ बकवाद करनेवाले, लोभी, क्रोधी, मिथ्यादृष्टि होते हैं। भिक्षुओं ! ईश्वर-निर्माण को ही साररूप ग्रहण कर लेने से यह करना योग्य है, यह करना अयोग्य है, इस विषय में संकल्प नहीं होता, प्रयत्न नहीं होता। जब यह करना योग्य है, यह करना अयोग्य है, इस विषय में ही यथार्थज्ञान नहीं होता, तो इस प्रकार के मूढस्मृति, असंयत लोगों का अपने-आपको धार्मिक-श्रमण कहना सहेतुक नहीं होता। ____ 3. भिक्षुओं! कुछ श्रमण-ब्राह्मणों का यह मत है, यह दृष्टि हैं कि जो कुछ भी कोई आदमी सुख-दु:ख या अदु:ख-असुख अनुभव करता है, वह सब बिना किसी हेतु के, बिना किसी कारण के (अनुभव करता है)। तब मैं उनसे कहता हूँ- आयुष्मानों! तुम्हारे मत के अनुसार बिना किसी हेतु के, बिना किसी कारण के आदमी प्राणीहिंसा करने वाले होते हैं, चोरी करने वाले, अब्रह्मचारी, झूठ बोलने वाले, चुगलखोर, कठोर बोलने वाले, व्यर्थ बकवाद करने वाले, लोभी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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