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________________ १८ : तत्तर्थसूत्र और उसकी परम्परा ८. सम्यक्त्व, हास्य, रति और पुरुषवेद पुण्य प्रकृति है। किन्तु दोनों परम्पराओं में इन्हें पुण्य प्रकृति नहीं कहा गया है। सुजिको ओहिरो के अनुसार उपर्युक्त आठ मतभेदों में दूसरे, तीसरे और आठवें मतभेद की पुष्टि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में आगमिक पद्धति के द्वारा होती है । पहला, चौथा और सातवां वास्तव में मतभेद नहीं है । पाँचवा और छठा विशेष महत्त्व के नहीं हैं।' __इनके अतिरिक्त अन्य दो मतभेद-जो पुद्गल बन्ध के नियम तथा परिषहों के सम्बन्ध में हैं, ओहिरो की दृष्टि में विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। यद्यपि ये मतभेद मूलसूत्रों को लेकर उतने नहीं है, अपितु उनकी व्याख्याओं के सम्बन्ध में है। बन्ध के नियम के सन्दर्भ में डॉ० सूजिको ओहिरो का कहना है कि ये सूत्र श्वेताम्बर परम्परा सम्मत अर्थ के साथ अधिक संगत हैं। दिगम्बर परम्परा सम्मत अर्थ से इनका तालमेल नहीं बैठता है। यद्यपि दिगम्बर परम्परा में इस पाठ को षट्खण्डागम के अनुरूप बनाने का प्रयत्न अवश्य किया गया। वे लिखती हैं कि सर्वार्थसिद्धिमान्य पाठ में सत्र मौलिक नहीं हैं, सूत्र ५/३५ बिना किसी विशेष विचार के अन्य सूत्रों के साथ अपना लिया गया मालूम होता है। इससे श्वेताम्बर पाठ की मौलिकता सिद्ध होती है। इसी सन्दर्भ में परिषहों की चर्चा के प्रसंग में वे लिखती हैं कि “दिगम्बर आचार्यों ने 'एकादश जिने' सूत्र (९/११) को बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार कर लिया परन्तु अपने रूढ़िगत विश्वास के अनुसार टीकाओं में अर्थ सम्बन्धी संशोधन कर डाला । उन्होंने यह संशोधन उपचार की पद्धति से किया ताकि इस सूत्र का मूल अर्थ बिगड़ न जाए, किन्तु इसमें वे असफल रहे हैं।"४ इससे यह निश्चित रूप से प्रमाणित होता है कि सूत्र ९/११ (११) मूलरूप में दिगम्बर परम्परा का नहीं है । अन्त में वे लिखती हैं कि “यह १. तत्त्वार्थसूत्र, विवेचक पं० सुखलाल जी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी ५, भूमिका भाग पृ० ९८-१०० २. वही पृ० १००-१०१ । ३. तत्त्वार्थसूत्र-विवेचक पं० सुखलालजी (पा० वि० शोध संस्थान ) भूमिका भाग पृ० १०३। ४. वही, पृ० १०६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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